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श्रीकृष्ण की माता देवकी ने अपने पूर्व जन्म में धीवरी के भव में क्षुल्लिका के व्रत धारण किये थे और पद्मपुराण में वर्णित अग्निभूति वायुभूति की पूर्व भव की कथा में एक दीन पामर किसान ने भी मुनि दीक्षा ग्रहण की थी । हे भाई, जैनधर्म की इस उदारता को देखो ॥३६॥
विमलाङ्गजः सुद्दष्टि चरोऽपि व्यभिचारिण्या जनुर्धरोऽपि । पश्यतोहरोऽपि मुनितामाप जातेरत्र न जात्वपि शापः ॥ ३७॥ सुदृष्टि सुनार का जीव अपनी व्यभिचारिणी स्त्री विमला के ही उदर से उत्पन्न हुआ, पीछे मुनि बनकर मोक्ष गया । उसके मोक्ष में जाने के लिए जाति का शाप कारण नहीं बना ॥३७॥
भावार्थ आराधना कथाकोश में एक कथा है कि एक सुदृष्टि नाम का सुनार था । उसके कोई लड़का न था, इसलिए किसी अन्य जाति के लड़के को उसने काम सिखाने के लिए अपने पास रख लिया । कुछ समय बाद सुनार की स्त्री उस लड़के के साथ कुकर्म करने लगी और अपने पति को अपने पाप में बाधक देखकर उसने उस लड़के से उसे मरवा दिया । वह सुनार मर कर अपनी इसी व्यभिचारिणी स्त्री के गर्भ से उत्पन्न हुआ और अन्त में मुनि बन कर मोक्ष गया । इस कथानक से तो जातीयता का कोई मूल्य नहीं रह जाता है । कथा ग्रन्थों में इस प्रकार के और भी कितने ही उदाहरण देखने में आते हैं ।
नर्तक्यां मुनिरुत्पाद्य सुतं कुम्भकारिणीतः पुनरनु तम् । राजसुतायामुत्पाद्य ततः शुद्धिमेत्य तैः सह मुक्तिमितः ॥३८. हरिषेणकथाकोश में राज मुनि की कथा है, तदनुसार उन राजमुनि ने पहिले एक नर्तकी के साथ व्यभिचार किया और उससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ । पुनः एक कुम्भार की पुत्री के साथ व्यभिचार किया और उससे भी एक पुत्र उत्पन्न हुआ । पुनः एक राजपुत्री से व्यभिचार किया और उससे भी एक पुत्र उत्पन्न हुआ । पीछे वह इन तीनों ही पुत्रों के साथ प्रायश्चित लेकर मुनि बन गया और अन्त में वे चारों ही तपश्वचरण करके मोक्ष गये ||३८||
हरिषेणरचितवृहदाख्याने यमपाशं चाण्डालं जाने 1
राज्ञाऽर्ध राजदानपूर्वकं दत्वाऽऽत्मसुतां पूजितं तकम् ॥३९॥
उसी हरिषेण रचित बृहत्कथाकोश में एक और कथानक है कि अहिंसा धर्म को पालन करने के उपलक्ष्य में यमपाश चाण्डाल को राजा ने अपने आधे राज्य के दान-पूर्वक अपनी लड़की उसे विवाह दी और उसकी पूजा की ॥३९॥
१ देखो - वृहत्कथा कोष कथाङ्ग १५३ । पृष्ठ ३४६ ।
१ देखो - बृहत्कथा कोष कथांक १८ । पृष्ठ २३८ ।
२ देखो - बृहत्कथा कोष कथांक ७४ । पृष्ठ १७८ ।
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