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________________ COe 153 वीरेण यत्प्रोक्तमदृष्टपारमगाधमप्यस्ति किलास्य सारम् । रत्नाकरस्येव निवेदयामि य इष्यते कौस्तुभवत् सुनामी ॥६२॥ वीर भगवान् ने अपने दिव्य प्रवचनों में संसार के हित के लिए जो कुछ कहा, वह वस्तुतः रत्नाकर के समान, अगाध और अपार है । किन्तु उसमें कौस्तुभ मणि के समान जो मुख्य मुख्य तत्त्व हैं, उनका सारांश मैं निवेदन करता हूँ ॥६२॥ साम्यमहिंसा अनुपमतयाऽनुसन्धेयानि 1 सर्वज्ञतेयमुत्तमवस्तु चत्वारीत्येतानि पुनरपि ॥६३॥ भगवान् महावीर के अगाध प्रवचनों में से साम्यवाद, अहिंसा, स्याद्वाद और सर्वज्ञता ये चार अनुपम उत्तम तत्त्व हैं । जिज्ञासु जनों को इनका अनुसन्धान करना चाहिए ॥ ६३ ॥ भावार्थ आगे इन्हीं चारों तत्त्वों का कुछ विवेचन किया जायगा । श्रीमान् श्रेष्ठि चतुर्भुजंः स सुषुवे भूरामले त्याह्न यं वाणीभूषणवर्णिनं घृतवरी देवी च यं धीयतम् । विवर्णनमभूत्पञ्चै कसंख्यावति कृते कीद्दशरूपतोऽथ जनता वीरोपदेशं सती ॥१५॥ - स्याद्वादस्यु सर्गेऽनेन प्राप्ता इस प्रकार श्रीमान् सेठ चतुर्भुजजी और घृतवरी देवी से उत्पन्न हुए वाणी-भूषण, बाल- ब्रह्मचारी पं. भूरामल वर्तमान मुनि ज्ञानसागर रचित इस वीरोदय काव्य में वीर भगवान् के धर्म का देश-देश में प्रचार और प्रभाव का वर्णन करने वाला पन्द्रहवां सर्ग समाप्त हुआ ||१५|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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