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________________ TETTEER T151rrrrrrrrrrrrrree चौहानवंशी कीर्तिपाल नामक नरेश की महीबला नाम की रानी भी जिनधर्म की धारण करने वाली हुई ॥५१॥ परमारान्वयोत्थस्य धरावंशस्य भामिनी श्रृङ्गारदेवी आसीच्च जिनभक्ति सुतत्परा ॥५२॥ परमार वंश में उत्पन्न हुए राजा धरावंश की भामिनी श्रृङ्गारदेवी हुई । जो जिनदेव की भक्ति करने में तत्पर रहती थी ॥५२॥ राजवर्गमिहे त्येवं प्लावयन् वीरभास्वतः । गोमण्डलप्रसारोऽभूद्भुवि तत्त्वं प्रकाशयन् ॥५३॥ इस प्रकार भारतवर्ष के अनेकों राज-वंशों को प्रभावित करता भगवान् महावीर रूप धर्म-सूर्य के वचन रूप किरणों का समूह संसार में सत्य तत्त्व का प्रकाश करता हुआ सर्व ओर फैला ॥५३॥ भूमिपालेष्विवामीषु वैश्येषु बाह्मणेषु च । शूद्रके ष्वपि वीरस्य शासनं समवातरन् ॥५४॥ वीर भगवान् का यह जिन-शासन राजाओं के समान वैश्यों में, ब्राह्मणों में और शूद्रों में भी फैला । (आज भी थोड़ी बहुत संख्या में सभी जाति के लोग इस धर्म के अनुयायी दृष्टिगोचर होते हैं) ॥५४॥ वीरस्य शासनं विश्वहिताय यद्यपीत्यभूत् । किन्तु तत्प्रतिपत्तारो जातास्तदनुयायिनः ॥५५।। यद्यपि वीर भगवान् का यह शासन विश्व मात्र के कल्याण के लिए था, किन्तु जिन लोगों ने उसे धारण किया, वे उसके अनुयायी कहे जाने लगे ॥५५॥ भावार्थ - आज वीर मतानुयायी अल्प संख्यक जैनों को देख कर कोई यह न समझे कि वीर भगवान् का उपदेश कुछ जाति विशेष वालों के लिए था, इसलिए जैनों की संख्या कम है । नहीं, उनका उपदेश तो प्राणिमात्र के हितार्थ था, और एक लम्बे समय तक जैन धर्मानुयायियों की संख्या भी करोड़ों पर थी । पर अनेक घटना-चक्रों से आज उनकी संख्या कम है । इतरेष्वपि लोकेषु तत्प्रभावस्त्वभूद् ध्रुवम् । येऽहम्मन्याख्यदोषेण तन्मतं नानुचक्रिरे जिन अन्य लोगों ने अहम्मन्यता दोष-वश वीर भगवान् के मत का अनुकरण नहीं किया, उन लोगों पर भी वीर-भगवान् द्वारा प्ररूपित अहिंसा-धर्म का प्रभाव स्पष्ट द्दष्टिगोचर हो रहा है । (यही कारण है कि हिंसा-प्रधान यज्ञादिक करने वाले वैदिक धर्मियों मे भी आज हिंसा दृष्टिगोचर नहीं होती है और वे लोग भी हिंसा से घृणा करने लगे हैं ।) ॥५६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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