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जिस महापुरुष के आगमन के उपलक्ष्य में उत्तर दिशा का स्वामी कुबेर जैसे इस भूतल पर पन्द्रह मास तक प्रतिदिन तीन बार उन उत्तम रत्नों की वर्षा करता रहा है, उसी प्रकार यह मणियों में भी महामणि स्वरूप सर्वोत्कृष्ट नर-रत्न आज त्रिशला देवी की खानि रूप कुंख से उत्पन्न हुआ ॥४३॥
श्रीमान् श्रेष्ठि चतुर्भुजः स सुषुवे भूरामले त्याह्वयं - वाणीभूषणवर्णिनं घृतवरी देवी च यं धीचयम् ॥ तेनास्मिन् रचिते यथोक्त कथने सर्गः षडेवं स्थितिः - राद्योंरभिसङ्ग मे जिनपतेरुत्पत्तिरासीदिति ॥६॥
इस प्रकार श्रीमान् सेठ चतुर्भुजजी और घृतवरी देवी से उत्पन्न हुए वाणीभूषण बाल-ब्रह्मचारी पं. भूरामल वर्तमान मुनि ज्ञानसागर द्वारा विरचित इस काव्य में वसन्त ऋतु में जिनपति वीर भगवान् की उत्पत्ति का वर्णन करने वाला यह छठा सर्ग समाप्त हुआ ॥६॥
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