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________________ गर्भस्य षण्मासमधस्त एव ववर्ष रत्नानि कुबेरदेवः | भो भो जनाः सोऽस्तु तमां मुदे वः श्रीवर्धमानो भुवि देवदेवः ॥ १ ॥ भो भो मनुष्यो ! वे देवों के देव श्री वर्द्धमान देव, तुम सबके परम हर्ष के लिए होवें, जिनके कि गर्भ में आने के छह मास पूर्व से ही कुबेर देव ने यहां पर रत्नों को बरसाया ॥१॥ 59 वा । समुल्लसत्पीनपयोधरा वा मन्दत्वमञ्चत्पदपङ्कजा पत्नी प्रयत्नीयितमर्त्यराजः वर्षेव पूर्णोदरिणी रराज ॥२॥ सिद्धार्थ राजा जिसकी सार सम्हाल में सावधानी पूर्वक लग रहे हैं, ऐसी उनकी पूर्ण- उदर वाली गर्भिणी पत्नी प्रियकारिणी रानी वर्षा ऋतु के समान शोभित होती हुई । जैसे वर्षा ऋतु जल से उल्लसित पुष्ट मेघ वाली होती है । उसी प्रकार से यह रानी भी उल्लास को प्राप्त पुष्ट स्तनों को धारण कर रही है । तथा जैसे वर्षा ऋतु में कमलों का विकास मन्दता को प्राप्त हो जाता है, उसी प्रकार रानी के चरण-कमल भी गमन की मन्दता को प्राप्त हो रहे थे । अर्थात् रानी गर्भ-भार के कारण धीरेधीरे चलने लगी ॥२॥ अथ षष्ठः सम " - गर्भार्भकस्येव यशः प्रसारैराकल्पितं वा धनसारसारै: । स्वल्पैर होभिः समुवाह देहमेषोपगुप्ता गुणसम्पदेह ॥३॥ रानी का संतप्त कांचन - कान्तिवाला शरीर धीरे-धीरे थोड़े ही दिनों में श्वेतपने को प्राप्त हो गया। सो ऐसा प्रतीत होता था कि गर्भ में स्थित बालक के कर्पूर-सार के तुल्य श्वेत वर्ण वाले यश के प्रसार से ही वह श्वेत हो गया है । इस प्रकार वह रानी गुण रूप सम्पदा से युक्त देह को धारण करती हुई ॥३॥ भावार्थ गर्भावस्था में स्त्रियों का शरीर श्वेत हो जाता है उसी को लक्ष्य करके कवि ने उक्त कल्पना की है। Jain Education International नीलाम्बुजातानि तु निर्जितानि मया जयाम्यद्य सितोत्पलानि । कापर्द कोदारगुणप्रकारमितीव तन्नेत्रयुगं बभार 11811 नील कमल तो मैंने पहिले ही जीत लिए हैं, अब आज मैं श्वेत कमलों को जीतूंगी, यह सोच करके ही मानों रानी के नयन-युगल ने कापर्दिक (कौंडी) के समान उदार श्वेत गुण के प्रकार को धारण कर लिया ||४|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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