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________________ 53 Jee किसी देवी ने माता की भुजाओं पर बाहुबन्ध बांधा, किसी ने माता के हाथों में कङ्कण बांधा । किसी देवी श्री वीर भगवान् की माता के हाथ में माणिक, मोती आदि से रचे हुए कंगनों को पहिनाया ||१५|| . तत्रार्हतोऽर्चा समयेऽर्चनाय योग्यानि वस्तूनि तदा प्रदाय । तया समं ता जगदेक से व्यमा भे जुरुत्साहयुताः सुदेव्यः ॥१६॥ उत्साह-संयुक्त वे सुदेवियां भगवान् की पूजन के समय पूजन के लिए योग्य उचित वस्तुओं को दे करके उस माता के साथ ही जगत् के द्वारा परम सेव्य जिनेन्द्र देव की उपासना - पूजा करने लगी ॥१६॥ एका मृदङ्गं प्रदधार वीणामन्या सुमञ्जीरमथ प्रवीणा । मातुः स्वरे गातुमभूत् प्रयुक्ता जिनप्रभोर्भक्तिरसेण युक्ता ॥१७॥ किसी एक देवी ने मृदङ्ग लिया, तो किसी दूसरी ने वीणा उठाई, तीसरी कुशल देवी ने मंजीरे उठाये । और कोई जिन भगवान् की भक्ति रूप रस से युक्त होकर माता के स्वर में स्वर मिलाकर गाने के लिए प्रवृत्त हुई ||१७|| चकार काचिद् युवतिः सुलास्यं स्वकीयसंसत्सुकृतैकभाष्यम् ।. जगद्विजेतुर्ददत्र दास्यं पापस्य कुर्वाणमिवाऽऽशु हास्यम् ॥१८॥ कोई युवती अपने पूर्वोपार्जित सुकृत के भाष्य रूप ( पुण्य स्वरूप), जगद् - विजयी जिनराज की दासता को करती हुई और पाप की मानों हंसी-सी उड़ाती हुई सुन्दर नृत्य को करने लगी ॥१८॥ अर्चावसाने गुणरूपचर्चा द्वारा समस्तूत विनष्ट वर्चाः । मतिः किलेतीङ्गितमेत्य मातुर्देव्यो ययुर्जोषमपीह जातु ॥१९॥ पूजन के अन्त में अब भगवान् के गुण रूप चर्चा - द्वारा हम सब लोगों में पाप की नाश करने वाली बुद्धि हो, अर्थात् अब हम सब की बुद्धि भगवद्-गुणों की चर्चा में लगे जिससे कि सब पापों का नाश हो, ऐसा माता का अभिप्राय जानकर सभी देवियां अपने नृत्य आदि कार्यों को छोड़ कर मौन धारण करती हुई ॥१९॥ सदुक्तये दातुमिवायनं सा रदालिरश्मिच्छलदीपवंशा । एवं प्रकारा समभूद् रसज्ञा श्रीमातुरेवात्र न चालसज्ञा ॥२०॥ दन्त - पंक्ति की कान्ति के छल से दीपकों के वंश वाली, आलस्य रहित ऐसी श्री जिनराज की माता की रसना (वाणी) उत्तम उक्ति (चर्चा) को अवसर प्रदान करने के लिए ही मानों इस प्रकार प्रकट हुई ॥२०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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