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श्रीमान् श्रेष्ठि चतुर्भुजः स सुषुवे भूरामलेत्याह्वयं - वाणीभूषण - वर्णिनं घृतवरी देवी च यं धीचयम् । श्रीवीराभ्युदयेऽमुना विरचिते काव्येऽधुना नामत स्तस्मिन् प्राक्कथनाभिधोऽयमसकौ सर्गः समाप्तिं गतः 11811 इस प्रकार श्रीमान् सेठ चतुर्भुजजी और घृतवरी देवी से उत्पन्न हुए वाणीभूषण, बाल- ब्रह्मचारी पं. भूरामल वर्तमान मुनि ज्ञानसागर द्वारा विरचित इस वीरोदय नामक काव्य में प्राक्कथन रूप यह प्रथम सर्ग समाप्त हुआ ॥१॥
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