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भूत आत्मा बाह्यात्मा कहे जाते हैं । तथा, देहे=देही अवस्था में । अन्तरात्मा देह के मध्यवर्ती प्रात्मा अन्तरात्मा कहे जाते हैं, अर्थात् भवेत् =हैं । इति = इस तरह शिव-जिनेश्वर देवत्व । त्रिविधः =तीन प्रकार के हैं । ये ही त्रिगुणात्मक शिव हैं । त्र्यंबक भी कहते है । श्लोकार्थ -
जब सिद्धि-मोक्ष की प्राप्ति हो जाय तब आत्मा परमात्मा कही जाती है, भवान्तर में बाह्यात्मा कही जाती है तथा देही-शरीर में अन्तरात्मा कही जाती है। इस तरह तीन प्रकार के शिव-जिनेश्वर देव हैं।
भावार्थ -
शास्त्र में तीन प्रकार की आत्मा प्रतिपादित की गई है । परमात्मा, बाह्यात्मा और अन्तरात्मा। प्रशान्त दर्शन
आदि गुणों से समलंकृत शिव-जिनेश्वर देव ही परमात्मा, बाह्यात्मा एवं अन्तरात्मा इन तीन प्रकार से युक्त हैं अर्थात् त्र्यंबक हैं। परमात्मा मोक्ष की प्राप्ति हो जाने पर अर्थात् मुक्त अवस्था में अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त चारित्र तथा अनन्त वीर्य मादि गुणों की सिद्धि होने से वह आत्मा परमात्मा कही जाती है। मुक्ति की प्राप्ति से पूर्व भवावस्था में जन्म ग्रहण करने के लिये पूर्व भव छोड़ कर जिनेश्वर तीर्थंकर की आत्मा परभव ग्रहण करने के
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