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________________ शब्दार्थ - यस्मात् =जिस कारण से । जिनः वीतराग-जिनेश्वरदेव । कायोत्सर्गी कायोत्सर्ग-काउसग्ग मुद्रा को धारण करने वाले । च तथा । पर्यडी पर्यङ्कासन को धारण करने वाले एवं स्त्रीशस्त्रादिविजितः स्त्री और शस्त्र आदि से रहित हैं, इसलिये वे, शिवः शिव । प्रोक्तः=कहे गये हैं। च तथा । शङ्करः शङ्कर । प्रकीर्तितः कहे गये हैं । श्लोकार्थ - जिस कारण से अर्हत्-वीतराग-जिनेश्वर प्रकीर्तित हैं वह यह है कि वे जिनेश्वर कायोत्सर्ग-काउसग्ग मुद्रा में तथा पर्यंकासने स्थित एवं स्त्री तथा शस्त्र-आयुध आदि से रहित हैं। इसलिये जिन शिव कहे गये हैं तथा शङ्कर कहे गये हैं। अर्थात् उनका वर्णन शिव और शङ्कर शब्दों से किया जाता है । भावार्थ - अर्हत्-वीतराग-जिनेश्वर देव कायोत्सर्गी अर्थात् काउस्सग्ग मुद्रा को धारण करने वाले तथा निर्विकल्प, निष्प्रकम्प और निरुपाधिक ध्यान-समाधि के लिये पर्यङ्क प्रासन से रहने वाले एवं स्त्री तथा शस्त्र-आयुध आदि से विमुक्तरहित हैं । इस हेतु से वे जिनेश्वर देव ही शिव तथा शङ्कर श्रीमहादेवस्तोत्रम्-४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002760
Book TitleMahadev Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSushilmuni
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi
Publication Year1985
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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