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________________ ज्ञान-चारित्रादियादिश्च, सः । महामञ्जुक्षमा महती च मञ्जुक्षमा महामञ्जुक्षमा, महती या मजु शोभना क्षमा तच्छीलः मनोरमा तितिक्षा तया शोभितः आशुतोषेति संज्ञया सार्थको भवति । एवमेतानि यस्य, सः =तादृशो देवः, महादेवः =अत एव महादेवलक्षणोपेतश्च स महादेवः । उच्यते कथ्यते । नान्य: ।। १३ ।। पद्यानुवाद - महावीर्य महाधैर्य भी जिस देव के उत्कृष्ट हैं , महाशील व महागुरण भी जिनके ही सर्वोत्तम हैं। जिसकी महामंजुक्षमा जग में भी सर्वाधिक है , कहे जाते वे विश्व में सच्चे जिन महादेव हैं ॥ १३ ॥ शब्दार्थ - यस्य=जिसके । महावीर्य वीर्य-आत्मबल महान् है । महाधैर्य = धैर्य-सन्तोष महान् है। महाशीलं = शील-चारित्र महान् है । महागुणः =गुण-सम्यग् दर्शनादि महान् हैं, तथा महामञ्जुक्षमा=जिनकी क्षमा (अपराध की सहनशीलता) महान् है । सः वह । महादेवः =महादेव । उच्यते कहे जाते हैं। अर्थात् वे वीतराग जिनेश्वर देव ही सर्वोत्कृष्ट हैं। श्लोकार्थजिनके महावीर्य, महाधैर्य, महाशील, महागुण हैं, श्रीमहादेवस्तोत्रम्-३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002760
Book TitleMahadev Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSushilmuni
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi
Publication Year1985
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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