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ज्ञानी । महातपाः = महान् तपस्वी । महायोगी = महान् योगी, तथा महामौनी = महान् मौनी हैं । सः वही । महादेवः = महादेव | उच्यते = कहे जाते हैं ।
श्लोकार्थ -
जिसमें महानंद और महादया है, तथा जो महाज्ञानी, महातपस्वी, महायोगी और महामौनधारी है, वे ही महादेव कहे जाते हैं ।
भावार्थ
जिस देव का श्रानंद महान् अर्थात् शाश्वत, अजन्म, अखण्ड, निरुपाधिक एवं निर्विकल्प होने के हेतु सर्वोत्कृष्ट है, तथा जिस देव की दया महान् अर्थात् विश्व के सभी जीवों के प्रति समान होने के कारण सर्वोत्तम है । तथा जो देव अनन्त एवं समस्तपदार्थविषयक सम्पूर्ण महान् ज्ञान वाले अर्थात् केवलज्ञानी हैं । दुष्कर, विशुद्ध तथा अत्यधिक अनशन आदि तप करने के कारण जो महान् तपस्वी हैं । सहज इत्यादि अतिशयों का कारणरूप होने से अलौकिक एवं असाधारण योग से जो युक्त महायोगी हैं । निराकार भी हैं । तथा महान् विशुद्ध मौनी अर्थात् मौनव्रतपालक और मुनियों के महान् लक्षणों से अर्थात् सर्वोत्तमभावों एवं विशुद्ध क्रियानों से युक्त महामौनी हैं; इसलिये वे देव ही महादेव कहे जाते हैं । अन्य नहीं ।। १२ ।।
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श्रीमहादेवस्तोत्रम् — ३६
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