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गुरणवांश्च स महादेवः । ते = तुभ्यमेव तादृशानुत्तमविशेषणसहिताय । नमः =नमस्कारः । प्रस्तु भवेत् । महामदलोभादिरहिताय महागुरगलाभाय च तादृशो महादेव एव नमस्करणीयः शिवः सर्वोत्कृष्टत्वात् ॥ ६ ॥
पद्यानुवाद
विश्व में महामद वर्जित महादेव स्वरूपी हैं महालोभ से वर्जित भी ये चिद्धनस्वरूपी हैं । महागुण से भी युक्त हैं ऐसे जिन महादेव हैं उनको ही मैं नमता हूँ जो जग में वन्दनीय हैं ॥ ८ ॥
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शब्दार्थ -
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महामदविवर्जित ! = हे महान् मद ( अभिमान, ग्रहङ्कार) से रहित ! महालोभविनिर्मुक्तः ! हे महान् लोभ से रहित ( अर्थात् निर्लोभ ) ! महागुणसमन्वित ! हे महान् गुणों से समन्वित ( अर्थात् विभूषित) ! महादेव ! = हे महादेव ( हे महेश्वर देव ) ! ते = आपको | नमः - ( मेरा ) नमस्कार । प्रस्तु = हो ।। ८ ।।
श्लोकार्थ
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महान् मद से मुक्त, महान् लोभ से रहित और महान् गुणों से युक्त हे महादेव ! आपको ( मेरा ) नमस्कार हो ।। ८ ।।
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श्रीमहादेवस्तोत्रम् - २४
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