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भावार्थ
जिस देवने (भव का) मोह-ममता के जालवृन्द को अर्थात् सभी प्रकार की ममताओं का विनाश कर दिया है, त्याग कर दिया है, वह देव अपनी शक्ति से, व्यक्तित्व से, विज्ञान-केवलज्ञान से और लक्षण से महादेव कहा जाता है । अर्थात--जिसने अपने क्षायिक अनन्त आत्मवीर्य और केवलज्ञान के प्रभाव से एक-एक करके मोह-ममतादिक का विनाश कर दिया है, वही मोह--ममतादिक का विनाश करने वाले, निखिल कर्म के क्षय से आविर्भूत अनन्त आत्मवीर्य तथा सहजादि अतिशय विशिष्ट वाले असाधारण और अलौकिक व्यक्तित्व एवं लोकालोकप्रकाशक केवलज्ञान तथा लक्षरण--इन सभी सद्गुणों की विद्यमानता होने से महादेव कहे गए हैं। विश्व में वे ही वास्तविक महादेव हैं। अन्य उक्त प्रकार की शक्ति प्रादि गुरण नहीं होने के हेतु गुण से या अर्थ से महादेव नहीं हैं । यह कथन सर्वदा सर्वथा स्पष्ट ही है ।। ७ ।।
[८] अवतरणिका -
महामदलोभजयाख्यगुणेन स्तुवन्नाह-- मूलपद्यम् - नमोऽस्तु ते महादेव! महामदविजित ! महालोभविनिमुक्ति ! महागुणसमन्वित ॥
श्रीमहादेवस्तोत्रम्-२२
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