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जालविनाशिता देवः । महादेवः = महान् देवः । उच्यते = कथ्यते । यो गतमोहोऽनन्तवीर्यः सातिशयव्यक्तिविज्ञानवान्, अत एव महादेवलक्षणसहितश्च स महादेव उच्यते । अन्यस्तु शब्दमात्र इति भावः ।। ७ ।।
पद्यानुवाद -
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स्वशक्ति से पूर्ण विज्ञान जिसको प्राप्त ही हुआ है तथा व्यक्ति से भी लक्षण जिसका सदा दिखाता है । भव की सब मोहजाल का विध्वंस जिसने किया है उनको ही वीतरागी विभु कहते ये महादेव हैं ।। ७ ।। शब्दार्थ
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येन = जिसने । मोहजालं = मोहजाल को । हतं विनाश कर दिया है । सः वह । शक्तितः शक्ति से । व्यक्तितश्चैव = तथा व्यक्तित्व से । विज्ञानात् = विशिष्टज्ञान-केवलज्ञान से । तथा = और । लक्षरणात् = लक्षरण से । महादेवः महादेव । उच्यते = कहे जाते हैं ।
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श्लोकार्थ -
जिसने अपनी शक्ति से विज्ञान अर्थात् विशिष्टज्ञानकेवलज्ञान प्राप्त किया है, तथा व्यक्ति से ( प्रगट रूप में) जिसका लक्षण दिखने में आता हो, और ( संसार के सभी ) मोहजाल को विनाश कर दिया है, वह देव ही विश्व में वीतरागी महादेव कहा जाता है ।
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श्रीमहादेवस्तोत्रम् —२१
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