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ब्रह्मा, विष्णु, महेश या जिनेश्वर - कोई भी हो, उनको मेरा नमस्कार है ।
भावार्थ -
जिस देव के भव-संसार के बीजांकुर अर्थात् मूलभूत कारण ( उत्पन्न करने वाले साधन ) रूप कर्म तथा जन्म आदि के हेतुभूत राग-द्वेषादिक विनष्ट हो गये हैं । अर्थात् जो देव वीतराग है वह नाम से ( विश्व में ) ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर या जिनेश्वर कोई भी हो, उसको मेरा नमस्कार है । उपरोक्त कथन से यह बात सिद्ध होती है कि सारे विश्वभर में जिनेश्वर - तीर्थंकर देव ही वीतराग देव हैं, अन्य कोई भी नहीं । फिर भी इस स्तोत्र के कर्त्ता कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजश्री ने अपनी तटस्थता सूचित की है कि गुण से ही किसी की स्तुति श्रादि होती है, केवल व्यक्ति की नहीं । विश्वभर में व्यक्ति कोई भी हो, गुणग्राही को व्यक्ति के विषय में पक्षपात नहीं होता है, किन्तु गुरण के विषय में अवश्य ही पक्षपात होता है ।। ४४ ।
इति कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्यविरचिते रम्ये श्रीमहादेवस्तोत्रे शासनसम्राट् - सूरिचक्रचक्रवर्ति- तपोगच्छाधिपति ब्रह्मतेजोमूर्ति श्रीकदम्बगिरिप्रमुखानेकप्राचीनतीर्थोद्धारक प्राचार्यमहाराजाधिराजश्रीमद्विजयने मिसूरीश्वराणां
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श्रीमहादेवस्तोत्रम् —–१३२
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