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शरीर की मधुर आह लादक कान्ति चन्द्र जैसी होने से चन्द्र नाम का गुण है । तथा अपने ज्ञान ( केवलज्ञान) के द्वारा समस्त विश्व को प्रकाशित करते हैं, इसलिये वे ज्ञान के द्वारा सम्पूर्ण विश्व में प्रकाशमान हैं, अतः वे सूर्य के समान कहे जाते हैं । जैसे सूर्य भी अपनी किरणों के द्वारा विश्व को प्रकाशित करता है, उस से भी अधिक वीतराग विभु सभी प्राणियों को सम्यग्ज्ञानादिक का सदुपदेश देकर उन के प्रज्ञान रूपी अन्धकार का विनाश करते हैं, और मोक्षमार्ग का प्रकाशन करते हुए सम्यग्दर्शन - ज्ञानचारित्र की सम्यग् प्राराधना द्वारा मुक्ति की सच्ची राह बताते हैं । इसलिये वीतराग अर्हन् जिनेश्वर देव का केवलज्ञान के द्वारा समस्त विश्व का प्रकाशन सूर्यनाम का गुरण है । यहाँ इस प्रकार क्षिति आदि आठ गुणों के होने से वीतराग जिनेश्वर अष्टमूर्ति रूप हैं ।। ३७ ।।
[ ३८ ]
अवतरणिका -
पूर्वोक्तमेवं गुणतो वीतरागोऽर्हन् जिनेश्वरदेवो हि महादेव इति स एव नमस्करणीय इत्याह---
मूलपद्यम्
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पुण्य-पापविनिर्मुक्तो, राग-द्वेषविवर्जितः । अर्हस्तस्य नमस्कार', कत्तव्यः शिवमिच्छता ॥
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श्री महादेवस्तोत्रम् - ११०
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