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________________ == अग्नि । यजमान - व्रती । - श्राकाश. : गगन | सोम - चन्द्रमा | तथा सूर्य = रवि । श्राख्या = नाम वाले । इति एते भगवति = - = ये सभी । भ्रष्टौ = आठ । गुरणाः = गुणों । भगवान् | वीतरागे = वीतराग (देव) में । मताः – माने हैं । [ इति एते ये सभी । अष्टौ = आठ । सुगुणाः = उत्तम गुरण | भगवति = भगवान् । वीतरागे = वीतराग में । गीता: = वरिणत हैं ] | श्लोकार्थ - पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, यजमान, आकाश, चन्द्र तथा सूर्य ये आठों गुण वीतराग भगवंत में माने हैं । अर्थात् ये सभी आठ उत्तम गुण भगवान् वीतराग में वरित हैं । भावार्थ [ पुराणों में महादेव की पृथ्वी प्रमुख प्राठ मूर्तियां प्रतिपादित की हैं । किन्तु एकमूर्ति अष्टमूर्ति नहीं हो सकती । जैसे पूर्व में एकमूर्ति के तीनमूर्ति नहीं होने में जो युक्तियाँ कही गयी हैं वे सभी इधर भी लगाने से स्पष्ट हो जायगा ।] प्रस्तुत श्लोक में उन आठों गुरणों के नाम इस मुजब निम्नलिखित हैं- (१) पृथ्वी, (२) जल, (३) वायु, (४) अग्नि, (५) यजमान, (६) आकाश, (७) चन्द्र, तथा ( ८ ) सूर्य नाम वाले ये सभी आठ उत्तम गुण भगवान् Bodies Jain Education International श्रीमहादेवस्तोत्रम् - १०० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002760
Book TitleMahadev Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSushilmuni
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi
Publication Year1985
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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