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________________ उससे रक्षण करता है और विश्व के निखिल द्रव्यपर्यायविषयक होने से व्यापक भी है, इसलिये पारमार्थिक स्वरूप से केवलज्ञान ही विष्णु है । चारित्र (सर्व सावद्यविरतिसंयम) सर्वदा ब्रह्मा कहा गया है। कारण कि पुराणों आदि में विश्व के सर्जक को ब्रह्मा कहा गया है। चारित्र भी मुक्तिरूपी सृष्टि का करने वाला मुक्तिप्रद (सिद्धिप्रद) है, इसलिये वास्तविक स्वरूप से चारित्र-संयम ही ब्रह्मा है तथा सम्यक्त्व-सम्यग्दर्शन को सर्वदा शिव कहा गया है। पुराणों आदि में विश्व के संहारक को शिवशंकर-महेश्वर-महेश कहा गया है । सम्यक्त्त्व-सम्यग्दर्शन भी आत्मा के साथ अनादिकाल से लगे हुए कर्मों के क्षयो पशमका हेतु होने से शिव कहा जाता है। कारण कि कर्म का विनाश होने से ही अपने भवभ्रमण का विध्वंसविनाश होता है। इसलिये सम्यक्त्व-सम्यग्दर्शन ही तात्त्विक रूप से शिव है। इन तीनों गुणों से समलंकृत अर्हन्-तीर्थंकर-जिनेश्वरदेव ही हैं । इसलिये वे ही एकमूर्ति हैं, एवं उनके केवलदर्शन, केवलज्ञान और अनंत चारित्ररूपी तीन ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वररूप भाग हैं ।। ३३ ।। [३४] अवतरणिका - अन्यष्टो महादेवः क्षित्याद्यष्टमूत्तिः प्रतिपाद्य ते, सोऽष्टमूत्तिः परमार्थतोऽष्टगुणसद्भावादहन्न वेत्याह--- श्रीमहादेवस्तोत्रम् -६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002760
Book TitleMahadev Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSushilmuni
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi
Publication Year1985
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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