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________________ शब्दार्थ ज्ञानं सम्यग्ज्ञान-केवलज्ञान । सदा सर्वदा । विष्णुः =विष्णु । प्रोक्तं = कहा जाता है। चारित्र=संयम-सर्वसावद्यविरति । ब्रह्मा=ब्रह्मा । उच्यते - कहा गया है । तु तथा । सम्यक्त्वं सम्यकत्व-सम्यग्दर्शन । शिवः= शिव-शंकर-महेश्वर-महेश । प्रोक्त = कहा गया है । इसलिये, अर्हनमूत्तिः जिनमुत्ति । त्रयात्मिका तीनों-ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर स्वरूप हैं। श्लोकार्थ - सर्वदा ज्ञान (सम्यग्ज्ञान, केवलज्ञान) वह विष्ण कहा जाता है, चारित्र (संयम, सर्व सावध विरति) वह ब्रह्मा कहा गया है तथा सम्यक्त्व (समकित, सम्यग्दर्शन) वह शिव (शंकर-महेश्वर-महेश) कहा जाता है। इसलिये, अर्हन्मूत्तिः जिनमूत्ति (ही) । त्रयात्मिका तीन प्रकार की (ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर स्वरूप) कह सकते हैं । भावार्थ - सम्यग्ज्ञान-केवलज्ञान सर्वदा ही विष्ण, कहा जाता है। कारण कि परतीथिकों के पुराणों प्रादि में पालक तथा व्यापक देव को विष्णु कहा गया है। लोकालोकप्रकाशक पंचमज्ञान-केवलज्ञान कर्मशत्र का विनाश करके श्रीमहादेवस्तोत्रम्-६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002760
Book TitleMahadev Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSushilmuni
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi
Publication Year1985
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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