________________
शक्तियाँ प्रसुप्तावस्था में हैं और उनमें उन शक्तियों का पूर्ण विकास हो चुका है। बैरिस्टर चम्पतराय जैन ने अपने ग्रन्थ Key of Knowledge में लिखा है- Man Passions = God ; God + Passions = Man. जैनधर्म ने ईश्वर का पद किसी एक व्यक्ति विशेष के लिए सर्वदा सुरक्षित नहीं रखा है । अनन्त आत्मानों ने स्वयं को पूर्णतया विकसित करके परमात्म-पद- महादेवत्व प्राप्त किया है और भविष्य में भी करती रहेंगी ।
अनन्त गुणों की धनी वह प्रात्मा कर्मों से सर्वथा मुक्त होने के कारण फिर कभी संसार चक्र में परिभ्रमरण कर जन्म-जरा-मरण की यंत्रणा नहीं उठाती । उस वीतराग, वीतद्व ेष, मोहविहीन, निर्भीक, प्रशान्त परमात्मा का विश्व के सुख-दुःख-दान में हस्तक्षेप स्वीकार करने पर वह भी राग-द्वेष मोहादि दुर्बलताओं से पराभूत हो जायेगा, साधारण प्राणियों की श्रेणी में आ जायेगा - तब उसका महादेवत्व कैसे बन सकेगा ?
वेदव्यास की गीता के प्रधान पुरुष श्री कृष्णचन्द्र की वारणी से भी यही सत्य प्रकट होता है कि
"
न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः न कर्मफलसंयोगं, स्वभावस्तु प्रवर्तते नादत्त कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभुः । अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः || - गीता ५ / १४-१५
जैन सिद्धान्त के अनुसार चार घातिकर्मो - ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय को दग्ध करके यह जीव केवलज्ञान प्राप्त कर सर्वज्ञ या केवली हो जाता है । अब उसका ज्ञान और दर्शन आत्मा के सिवा अन्य किसी की अपेक्षा नहीं रखता अतः वह केवली कहा जाता है । उसे जीवन्मुक्त भी कहा जा सकता है
Jain Education International
सात
For Private, & Personal Use Only
www.jainelibrary.org