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श्लोकार्थ -
जो विष्णु कार्य हो, ब्रह्मा क्रिया हो और महेश्वर कारण हो, तो कार्य और कारण से बनी हुई एक ही मूर्ति कैसे हो सके ? अर्थात् किस तरह सम्भवे ?
भावार्थ
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लौकिक मत वाले पौराणिकों की यह मान्यता है कि महेश्वर की प्रेरणा से ब्रह्मा के शरीर से विष्णु की उत्पत्ति हुई है । ऐसी स्थिति में महेश्वर निमित्त, ब्रह्मा द्वार तथा विष्णु कार्य हुए। जैसे दण्ड निमित्त कारण है, चक्र का घूमना द्वार है और घट कार्य है । इस तरह यहां भी ये तीनों कार्यकारणभाव को प्राप्त हैं । इसलिये वे (ब्रह्माविष्णु-महेश की ) तीन मूर्तियां एक मूर्तिरूप में अर्थात् एक मूर्ति कैसे हो सकती हैं ? कभी भी एक ही व्यक्ति में या एक ही वस्तु पदार्थ में कार्यकारणभाव नहीं हो सकता, किन्तु भिन्न व्यक्तियों में या भिन्न वस्तुत्रों-पदार्थों में होता है । जैसे दण्ड तथा घट में । इसलिये इस श्लोक में कहा है कि- एक मूत्तिः कथं भवेत् ?' 'ब्रह्मा-विष्णुमहेश्वर' ये तीनों कार्यकारणभाव को प्राप्त हैं, तो एकमूर्ति कैसे हो सकती है ? अर्थात् नहीं हो सकती ।। २२ ।।
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श्रीमहादेवस्तोत्रम् ६७
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