SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्वरस्य प्रेरणया ब्रह्मणः शरीराद् विष्णोः समुत्पन्न इति पौराणिककथाऽनुसारेण इत्थमुक्तिरिति ध्येयम् । कार्यकारणसम्पन्नाः= कार्यकारणभावं हेतुपरिणामत्वभावमापनास्ते ब्रह्मविष्णुमहेश्वराख्यास्त्रयः । एकमूत्तिः एकव मूल् तनु भावेन एकत्वेन अभिन्नतनुः । कथं भवेत् ? =केन प्रकारेण सम्भवेत् ! काक्वा नैव कथमपि भवेदित्यर्थः ।। २२ ॥ पद्यानुवाद - विश्व के कार्यरूप विष्णु क्रियारूप ब्रह्माजी हैं , कारण स्वरूप महेश्वर वे तीनों भिन्न देव हैं। कार्य-कारणभाव को ही प्राप्त वे तीन मूत्तियां, इक ही मूत्ति रूप कैसे हो सके ? घटे न युक्तियाँ ॥ २२ ॥ शब्दार्थ विष्णुः विष्णु नाम के देव । कार्य = कार्य-फलरूप पुत्र हैं। ब्रह्मा ब्रह्मा नाम के देव । क्रिया=क्रिया रूप द्वार हैं । तु तथा । महेश्वरः महेश्वर नाम के देव । कारणं =कारण-निमित्त हैं। इस प्रकार, कार्यकारणसम्पन्नाः= कार्य और कारण भाव को प्राप्त हुई तीन मूर्तियां । एकमूत्तिः एक मूत्ति । कथं कैसे। भवेत् ? =हो सके ?, अर्थात् एक मूत्ति नहीं हो सकती ॥ २२ ॥ श्रीमहादेवस्तोत्रम्-६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002760
Book TitleMahadev Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSushilmuni
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi
Publication Year1985
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy