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________________ (भाग) हैं । किन्तु, परस्परं परस्पर यानी एक दूसरे से । विभिन्नानाम् = विभिन्न अर्थात् भिन्न स्वरूप देह वालों की। एकमूत्तिः एक मूर्ति यानी एक काया। कर्श कैसे । भवेत् ? =हो सकती है । अर्थात्-परस्पर एक दूसरे से भिन्न शरीर वालों की तीन मूर्तियाँ जुदी-जुदी होंगी, एक तो नहीं। श्लोकार्थ - ___जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर एक मूत्ति के तीन अंश हैं, तो एक दूसरे से भिन्न की एक मूत्ति किस तरह हो सके ? अर्थात् न हो सके । भावार्थ - ___ अन्य मत वालों का यह कथन है कि--ब्रह्मरूप एक व्यक्ति के ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये तीनों अंश-भाग हैं । यहाँ यह प्रश्न होता है कि--ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर ये तीनों परस्पर भिन्न स्वरूप वाले हैं। इसलिये इन तीनों की एक मत्ति या एक मत्ति के ये तीनों अंश-विभाग किस तरह हो सकते हैं । एक मूत्ति के तीन अवयव तो हो सकते हैं, किन्तु पृथग रही हुई तीन सावयव मूर्तियाँ एक में तथा एक सावयव मूत्ति तीन सावयव मूत्तियों में कैसे सम्भव है ? अर्थात्--पृथग रही हुई तीन मूर्तियाँ एक मूत्ति या एक मूर्ति के अंश-भागरूप तीन मूत्तियाँ नहीं हो सकती हैं । श्रीमहादेवस्तोत्रम् -६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002760
Book TitleMahadev Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSushilmuni
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi
Publication Year1985
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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