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श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकारायनुक्रमः ।
दिशो रूढया - ले | ३|१|२५|| दिस्योरीट् ||४|४|८९|| दीङ: सनि वा | ४|२|६॥ दीपजनबुध वा | ३ | ४ | ६७||| दीप्तिज्ञानयत्न-दः । ३|३|७८||
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दीय् दीङः -रे | ४|३|९३॥ दीर्घः ||६|४|१२७|| दीर्घड्याब् - से: | १|४|४५॥ दीर्घमवोऽन्त्यम् |४|१|१०३।। दीर्घश्च्वियङ्-च ।४।३।१०८।। दीर्घो नाम्य - प्रः | १|४|४७|| दुःखात्प्रातिकूल्ये | ७|२|१४१ ।। दुःस्वीषतः - खल् ||५|३|१३९|| दुगोरू च |४|२|७७|| दुनादिकुर्वि - ञ्यः | ६ |१|११८॥ दुर्निन्दकृच्छ्रे | ३|१|४३||
दुष्कुलादेयण्वा |६।१।९८। दुहदिहलिह - कः | ४ | ३ |७४|| दुहेघः | ५ | १|१४५ || दूरादामन्त्रय-नृत् |७|४|९९|| दूरादेत्यः |६|३|४|| दृग्दृशदृक्षे | ३|२| १५१ || दृतिकुक्षि- यणू | ६ |३|१३०|| दृतिनाथात्पशाविः | ५|१|९७|| हन्पुनर्वर्षाकारैर्भुवः | २|११५९ ||
- वृग् - स्तु - जुषे - सः | ५ | १|४०|| दृशः क्वनिप् |५|१|१६६॥ भवदोरात्मने | २|२९|| दृश्यर्थैश्चिन्तायाम् ।२।१।३०॥ दृष्टे साम्नि नाम्नि | ६|२|१३३|| देये त्रा च |७|२| १३३॥ देर्दिगिः परोक्षायाम् ||४|१|३२|| देवता |६|२|१०१।। देवतानामात्वाद |७|४|२८||
देवतान्तात्तदर्थे |७|१|२०||
देवपथादिभ्यः | ७|१|१११|| देववातादापः |५|१|९९|| देवव्रतादीन् डिन् |६|४|८३|| देवात् तल् |७|२|१६२॥
देवाद्यञ् च|६|१|२१||
देवानांप्रियः |३|२|३४|| देवार्चामैत्री स्थः | ३|३|६०|| देविका - शिं-वाः | ७|४|३||
देशे | २|३|७० || देशेऽन्तरो-नः | २|३|९१ || दैर्येऽनुः | ३|१|३४|| दैवयज्ञिशौचिव - र्वा | २|४|८२|| दो मः स्यादौ |२| १|३९|| दोरप्राणिनः | ६|२|४९॥ दोरीयः |६|३|३२||
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