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श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकाराद्यनुक्रमः ।
घञि भावकरणे | ४|२|५२|| घञ्युपसर्ग-लम् | ३|२|८६ ॥ घटादेर्हस्वो-रे ||४|२|२४||
घसेकस्वरा-सोः | ४|४|८२|| घस्ल सन-लि | ४|४|१७||
घस्वसः | २|३|३६||
घुटि | १|४|६८ || घुषेरविशब्दे |४|४|६८|| घोषदादेरकः | ७|२|७४||
घोषवति | १|३|२१||
प्राध्मापाद्धे - शः | ५ | १/५८||
प्राधमोर्यङि | ४ | ३ |९८|| घ्यण्यावश्यके | ४|१|११५||
ङसेश्चाद् |२|१|१९||
सोऽपत्ये | ६ | १|२८|| ङस्युक्तं कृता | ३|१|४९||
ङिर्यौः | १|४|२५||
ङित्यदिति | १|४|२३||
ङेः स्मिन् | १|४|८|| डेङसा ते मे | २|१|२३||
ङेङस्योर्यातौ | १|४|६||
ङे पब: पीप्य |४ | १|३३||
ङ सासहिवाव -
णो: कटा - वा | १|३|१७||
|५|२|३८||
ङयः | ३|२|६४||
ङयादीदूतः के |२|४|१०४||
ङयादेर्गौण- च्योः | २|४|९५|| ङयापो बहुलं नाम्नि | २|४|९९||
ङयाप्त्यूङः |६|१|७०|| चक्षो वाचि - ख्यांग् | ४|४|४|
चजः कगम् | २|११८६ | चटकाण्णैरः-प्|६|१|७९|| चटते सद्वितीये | १ | ३ |७|| चतस्रार्द्धम् |३|१|६६||
चतुरः | ७|१|१६३॥
चतुर्थी | २|२|५३॥
चतुर्थी प्रकृत्या | ३|१|७० || चतुर्मासान्नाम्नि |६|३|१३३|| चतुष्पाद् गर्भिण्या | ३|१|११२ ।।
चतुष्पाद्भय एयञ् |६|१|८३ || चतुस्त्रेर्हा-सि | २|३|७४|| चत्वारिंशदादौ वा | ३ |२|९३||
चन्द्रयुक्तात् | ६ |२|६|| चन्द्रायणं च चरति |६|४|८२||
चरकमा-नञ् ।७|१|३९|| चरणस्य स्णो दे | ३|१|१३८||
चरणादकञ् |६|३|१६८|| चरणाद्धर्मवत् |६|२|२३ ॥ चरति |६|४|११।।
चरफलाम् ||४|१|५३॥
चराचरचला - वा |४|१|१३||
चरेराङस्त्वगुरौ | ५ | १|३१||
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