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________________ ११६ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकाराद्यनुक्रमः । कालवेलासमये-रे |५|४|३३|| कालस्यानहोरात्राणाम् ||५|४|७|| कालहेतु-गे | ७|१|१९३।। कालाजाघा -पे | ७|२|२३|| कालात् |७|३|१९|| कालात् तनतरतम० |३|२|२४|| कालात् परि-रे |६|४|१०४ || कालाद् भववत् |६|२|१११|| कालाद् यः | ६|४|१२६ || कालाध्वनोर्व्याप्तौ | २|२|४२|| -वत् |६|४|९८|| - कालाध्वमा-णाम् |२|२|२३|| काले कार्ये - कालेन तृष्य - रे | ५|४|८२|| काले भान्नवाssधारे | २|२|४८|| कालो द्विगौ च मेयैः | ३|१|५७|| काशादेरिलः | ६ |२|८२|| काश्यप-कौ च |६|३|१८८ ।। काश्यादेः |६|३|३५|| कासूगोणीभ्यां तरट् | ७|३|५०|| किंयत्तत्सर्वदा ||२|९५|| किंवृत्ते लिप्सायाम् | ५ | ३|९|| किंवृत्ते सप्तमी - त्यौ |५|४|१४|| किंयत्तद्बहोर: | ५ | १|१०१ || किंकिलास्त्यर्थ-न्ती |५|४|१६|| किं क्षेपे | ३|१|११०॥ किंत्याद्ये-स्याम् ।७|३|८|| कित: संशयप्रतीकारे | ३ | ४|६|| किमः क च |२| १|४०| किमद्वयादि-तस् |७|२|८९|| किरो धान्ये | ५ | ३ |७३|| किरो लवने | ४|४|१९३॥ किशरादेरिकट् |६|४|५५ ।। | कुक्ष्यात्मोदरा - खिः | ५ | १ | ९०|| कुआदेञयन्यः | ६ |१| ४७/ कुटादेर्डिद्वदञ्णित् |४|३|१७|| कुटिलिकाया अणू | ६ | ४|२६|| कुटीशुण्डाद्रः | ७|३|४७|| कुण्डादिभ्यो लु० | ६|३|११|| कुत्वा डुपः | ७|३|४९॥ कुत्सिताल्पाज्ञाते |७|३|३३|| कुन्त्यवन्तेः स्त्रियाम् |६|१|१२१|| कुप्यभिद्यो नि | ५ | १|३९|| कुमहद्भ्यां वा । ७।३।१०८।। कुमारः श्रमणादिना | ३|१|११५ ॥ कुमारशीर्षाणिन् | ५ | १|२८|| कुमारीक्रीड-सोः | ७|३|१६|| कुमुदारिकः | ६ |२| ९६ ।। कुरुछुरः |२| १|६६ ॥ कुरुयुगंधराद् वा | ६ | ३|५३|| कुरोर्वा |६|१|१२२|| कुर्वादेः | ६ | १|१००| कुलकुक्षि- रे | ६ | ३|१२|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002758
Book TitleSiddhhemchandrashabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherHemchandracharya Jain Gyanmandir Patan
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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