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श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकाराद्यनुक्रमः ।
ये जिह्माशिनः | ७|४|४७|| एषामीर्व्यञ्जनेऽदः || ४|२|९७||
एष्यत्यवधौ-गे |५|४|६||
एष्यदृणेनः | २|२|९४ ||
ऐकार्थ्ये | ३|२|८|| ऐदौत्-रै: ।१।२।१२।। ऐषम: परु- र्ष | ७|२|१००|| ऐषमोह्यःश्वसो वा | ६ | ३|१९|| ओजः सहो-ते |६|४|२७||
ओजोञ्जः स - ष्टः | ३|२|१२|| ओजोऽप्सरसः | ३ | ४|२८||
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ओत औ: | १|४|७४|| ओतः इये | ४|२| १०३|| ओदन्तः | १|२|३७|| ओदौतोऽवान् | १|२|२४|| ओम प्रारम्भे | ७|४|९६ || ओमाङ | १| २|१८|| ओर्जाऽन्तस्था - र्णे |४|१|६०||
ओष्ठादुर् | ४|४|११७॥
औता | १|४|२०|| औदन्ताः स्वराः | १|१|४||
औरी | १|४|५६ || कंशंभ्यां-भम् |७|२|१८|| कंसार्थात् | ६|४|१३५ ||
कंसीयात् ञ्यः | ६ | २|४१ ||
ककुदस्या-म् | ७|३|१६७|| कखोपान्त्य-दोः |६|३|५९|| कगेवनूजनै-रञ्जः ।४।२।२५।।
कङश्वञ् ||४|१|४६|| कच्छाग्निवक्त्र-दात् |६|३|६०|| कच्छादेर्नृनृस्थे ।६।३।५५।।
कच्छ्वा डुरः | ७|३|३९|| कटः | ७|१|१२४॥ कटपूर्वात्प्राचः | ६ | ३|५८|| कठादिभ्यो वेदे लुप् |६|३|१८३|| कडारादयः कर्म० | ३|१|१५८||
कमनस्तृप्त | ३|१|६||
कण्ड्वादेस्तृतीयः | ४|१|९|| करकतमौ - | ३ | १|१०९ ||
कत्त्रिः | ३ |२| १३३ ॥ कत्र्यादेश्चैकञ् |६|३|१०||
कथमित्थम् |७|२|१०३ ॥ कथम सप्तमी च वा |५|४|१३||
कथादेरिकण् |७|१|२१॥ कदाकह्यर्नवा |५|३|८||
कन्याया इक | ६ |३|२०|| कन्यात्रिवेण्याः-च |६|१|६२|| कपिज्ञातेरेयण् |७|१|६५॥ कपिबोधा से |६|१|४४||
कपेर्गोत्रे |२|३|२९||
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