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________________ ११४ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकाराद्यनुक्रमः । ये जिह्माशिनः | ७|४|४७|| एषामीर्व्यञ्जनेऽदः || ४|२|९७|| एष्यत्यवधौ-गे |५|४|६|| एष्यदृणेनः | २|२|९४ || ऐकार्थ्ये | ३|२|८|| ऐदौत्-रै: ।१।२।१२।। ऐषम: परु- र्ष | ७|२|१००|| ऐषमोह्यःश्वसो वा | ६ | ३|१९|| ओजः सहो-ते |६|४|२७|| ओजोञ्जः स - ष्टः | ३|२|१२|| ओजोऽप्सरसः | ३ | ४|२८|| : ओत औ: | १|४|७४|| ओतः इये | ४|२| १०३|| ओदन्तः | १|२|३७|| ओदौतोऽवान् | १|२|२४|| ओम प्रारम्भे | ७|४|९६ || ओमाङ | १| २|१८|| ओर्जाऽन्तस्था - र्णे |४|१|६०|| ओष्ठादुर् | ४|४|११७॥ औता | १|४|२०|| औदन्ताः स्वराः | १|१|४|| औरी | १|४|५६ || कंशंभ्यां-भम् |७|२|१८|| कंसार्थात् | ६|४|१३५ || कंसीयात् ञ्यः | ६ | २|४१ || ककुदस्या-म् | ७|३|१६७|| कखोपान्त्य-दोः |६|३|५९|| कगेवनूजनै-रञ्जः ।४।२।२५।। कङश्वञ् ||४|१|४६|| कच्छाग्निवक्त्र-दात् |६|३|६०|| कच्छादेर्नृनृस्थे ।६।३।५५।। कच्छ्वा डुरः | ७|३|३९|| कटः | ७|१|१२४॥ कटपूर्वात्प्राचः | ६ | ३|५८|| कठादिभ्यो वेदे लुप् |६|३|१८३|| कडारादयः कर्म० | ३|१|१५८|| कमनस्तृप्त | ३|१|६|| कण्ड्वादेस्तृतीयः | ४|१|९|| करकतमौ - | ३ | १|१०९ || कत्त्रिः | ३ |२| १३३ ॥ कत्र्यादेश्चैकञ् |६|३|१०|| कथमित्थम् |७|२|१०३ ॥ कथम सप्तमी च वा |५|४|१३|| कथादेरिकण् |७|१|२१॥ कदाकह्यर्नवा |५|३|८|| कन्याया इक | ६ |३|२०|| कन्यात्रिवेण्याः-च |६|१|६२|| कपिज्ञातेरेयण् |७|१|६५॥ कपिबोधा से |६|१|४४|| कपेर्गोत्रे |२|३|२९|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002758
Book TitleSiddhhemchandrashabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherHemchandracharya Jain Gyanmandir Patan
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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