________________
११८८ जयोदय-महाकाव्यम्
[ ३८-३९ पदयोरित्यादि-निखिला अपि नियोगिनोऽमात्यावयस्ते वचसा न च साक्षिणोऽपि न किमप्युक्तवन्तोऽपि भवावृशो यमी संयमधरो जयतादेव सफलतां यातु किलेति सूचन यन्तोऽमी सवयो वयया सहित उपयोगो मनोविचारस्तद्वतः पदयोश्चरणोः परिपेतुः निपतन्ति स्मेत्यनुप्रासोऽलंकारः ॥३७॥
तनयाभिषवोत्सवक्रिया नृपतेनिर्गमसम्भवद्भिया । गरलोत्तरलड्डुभुक्तिववभवत् सभ्यजनाय पक्तिभृत् ॥३८॥
तनयेत्यादि-नपतेर्जयकुमारस्य निर्गमो गृहात्यागस्ततः सम्भवन्ती या ह्रीस्त्रपा:निच्छारूपा तया सहिता या तनयस्यानन्तवीर्यस्याभिषेवोत्सवक्रिया राज्याभिषेकवृत्तिः. सा सभ्यजनाय सभास्थितवर्गाय पक्तिभृत् परिणामवती गरलं विषमुत्तरं यस्याः साऽसौ. लड्डुभुक्तिर्मोदकभक्षणक्रिया तद्वदभवत् सहर्षविषादवती बभूव । उपमालंकारः ॥३८॥
अदयं हृदयं च योगिनां परिगीयेत गुणानुयोगिनाम् । परिदेविनि दूयते न वा निजबन्धौ ममता महोजयत् ॥३९॥
अदयमित्यादि-अहो गुणेषु क्षमाधर्याविषु अनुयोगस्तल्लीनता तद्वतां योगिनां महात्मनां चापि हृदयं मनोऽदयं दयारहितमेव परिगीयेत किलोच्येत यत् किलममतां मोहपरिणति. जय विनाशयत् सत् परिदेवनमेव परिदेवस्तद्वति परिदेविनि विलापवति निजबन्धी कुटुम्बिनि न वूयते द्रवीभवति । 'विलापः परिदेवनम्' इत्यमरः । अनुप्रासोऽलंकारः ॥३९॥
अर्थ मन्त्री आदि समस्त नियोगी पुरुष वचनसे कुछ नहीं कहते हुए भी यह सूचित कर रहे थे कि आप जैसे संयमी पुरुष जयवन्त होते ही हैं-कर्मशत्रुओं पर विजय प्राप्त करते ही हैं। चुपचाप यह सूचित करते हुए वे दयालु हृदय वाले जयकुमारके चरणोंमें पड़ गये ।।३७॥
अर्थ-राजा जयकुमारके गृहत्यागसे होने वाली लज्जाके कारण पुत्रअनन्तवीर्यके राज्याभिषेक सम्बन्धी उत्सवकी क्रिया सभ्य जनोंके लिये उस मोदकभुक्ति-लड्डू-भुक्तिके समान हुई, जिसमें खानेके बाद विषरूप परिपाक होता है। तात्पर्य यह है कि जो मनुष्य राज्याभिषेककी सभामें उपस्थित थे, उन्होंने पहले हर्षका अनुभव किया पश्चात् विषाद का ॥३८| ____ अर्थ-आश्चर्य है कि क्षमा, धैर्य आदि गुणोंमें तल्लीनता रखने वाले योगियों-साधुओं अथवा महात्माओंका हृदय निर्दय कहा जा सकता है, क्योंकि ममताको जीतने वाला उनका हृदय निज कुटुम्बीजनोंके विलाप करने पर भी द्रवीभूत नहीं होता ।।३९।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org