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महनीयकृतिको प्रकाशित देख प्रसन्नताका अनुभव करेंगे । अनुवाद करते समय आचार्यश्रीसे कई बार परामर्श किया गया है तथा प्रकाशनके पूर्व ग्रन्थकी पाण्डुलिपि विशाल जनसमूहके बीच नैनागिरिजीमें आचार्यश्री को समर्पित की गई थी । संपादन और अनुवाद त्रुटियोंके लिये विज्ञपाठकोंसे क्षमा प्रार्थी हूँ ।
इस काव्यके 'प्रभात वर्णन' आदि कुछ प्रसंग अपने आपमें परिपूर्ण हैं तथा विश्वविद्यालयोंके पठन क्रममें सम्मिलित करने योग्य है ।
श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल पिसनहारी की मढ़िया, जबलपुर
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विनीत पन्नालाल जैन
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