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________________ पुराणके अन्तिम पाँच पर्व (वि० सं०९००), हस्तिमल्लकृत विक्रान्तकौरव अथवा सुलोचनानाटक (वि० सं० १२५०), वादिचन्द्रभट्टारककृत सुलोचनाचरित (वि० सं० १६७१), ब्र० कामराजप्रणीत जयकुमारचरित (वि० सं० १७१०) तथा ब्र० प्रभुराजविरचित जयकुमारचरित । जयोदय महाकाव्यको कथावस्तु ऐतिहासिक है। जयकुमारका अपर अभिधेय मेघेश्वर भी है। ये हस्तिनापुरके नरेश हैं। किन्तु चक्रवर्ती भरतके सेनापति भी हैं। इनको पत्नी सुलोचनाके चरित्रका आधार लेकर जैन कवियों ने कथा, काव्य, नाटक आदिकी रचना की है । विक्रान्तकौरवनाटक प्रसिद्ध है । जयकुमार अप्रतिम योद्धा होने के साथ ही साथ सौन्दर्य एवं शोलके भण्डार थे। एक बार वे काशिराज अकम्पनकी राजकुमारो सुलोचनाके स्वयंवरमें सम्मिलित हुए। अयोध्याधिपति चक्रवर्ती भरतके पुत्र अर्ककीर्ति भी वहाँ उपस्थित थे। किन्तु राजकुमारो सुलोचनाकी वरमालासे जयकुमारकी ग्रीवा सुशोभित होने लगी। स्वयंवरको समाप्तिपर अर्ककीति तथा जयकुमारके मध्य संग्राम छिड़ गया। विजयश्रोने भी जयकुमारका ही वरण किया। महाकवि भूरामलने ३-५ सर्गो में सुलोचनास्वयंवरका वर्णन किया है। ६-८ सर्गों में युद्धका वर्णन किया है। नवम सर्गमें अर्ककोतिको प्रसन्न करने हेतु काशिराज अकम्पनने उसका विवाह सुलोचनाकी अनुजा अक्षमालासे कर दिया और उसकी सूचना चक्रवर्ती भरतको भिजवा दो । १०-१२ सोंमें जय कुमारके विवाहकी तैयारियाँ, जयकुमार द्वारा सुलोचना रूप निरूपण, पाणिग्रहण, वरयात्राका सत्कार और ज्योनारका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है । त्रयोदश सर्गमें काशीसे हस्तिनापुरके लिए प्रस्थान तथा गङ्गा नदीपर पड़ावका मनोरम वर्णन किया गया है। चतुर्दश सर्गमें नदीतीरोद्यान और वायुसेवनका वर्णन, पञ्चदश सर्गमें सूर्यास्तमन वेलाका अनुपम निरूपण तथा चन्द्रोत्सववर्णन किया गया है । षोडश सर्गमें निशीथोत्तरवर्ती पानगोष्ठीका वर्णन हुआ है। सप्तदश सर्गमें सुलोचनासुरतोपहारका वर्णन हुआ है । अष्टादश सर्गमें सुरतोत्तर प्रभातवर्णन, उन्नीसवें सर्गमें प्रभातवन्दना, बीसवें सर्गमें जयकुमारका चक्रवर्ती भरतसे वार्तालाप, इक्कीसवें सर्गमें हस्तिनापुरको प्रस्थान, बाईसवें सर्गमें जयकुमार तथा सुलोचना का मिलनवर्णन, तेईसवें सर्गमें दम्पतिवैभववर्णन, चौबीसवें सर्गमें जयकुमार की सुलोचनाके साथ तीर्थ यात्राका वर्णन पच्चीसवें सर्गमें जय कुमार वैराग्यभावनाप्ररूपक, छब्बीसवें सर्ग में जयकुमारका जिनेन्द्र वृषभदेवसे संभाषण तथा पुत्र अनन्तवीर्यके राज्याभिषेकका वर्णन, सत्ताईसवें सर्गमें जयकुमार की दीक्षा, अट्टाईसवें सर्गमें जयकुमारदम्पतीके उग्र तप द्वारा पाँचों इन्द्रियोंके दमन का वर्णन किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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