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________________ ६६२ जयोदय-महाकाव्यम् [ १०७-१०९ तद्भालसिन्दलदलेन रोषारुणेव पूत्कृत्य पतिं प्रतीतः । यावन्नदी व्याकुलिता जगाम द्विपा विनिर्गत्य गताः स्वधाम ।।१०७।। . तद्धालेत्यादि । नदी तेषां द्विपानां भालस्य सिन्दूलदलेन हेतुना रोषेण प्रकोपेणारुणा रक्तवर्गा सती पूत्कृत्य, यावदित: प्रदेशात् पति समुद्र प्रति व्याकुलितोद्विजिता भीता जगाम तावन्निर्गत्य विनिवृत्य द्विपा गजाः स्वधाम निजस्थानं गताः । स्थाने च श्वापि बलीयानित्यर्थः ॥ १०७॥ स नेक्षते सन्निकटां गरेणु न्यस्तं पुरः स्मात्ति च नेक्षुकाण्डम् । सस्मार सारस्य निमीलिताक्षः स्वेच्छाविहारस्य वने द्विपेन्द्रः ॥१०८।। स इति । स द्विपेन्द्रो गजराजः सन्निकटां समीपस्था गरेणु हस्तिनी नेक्षते स्म न ददर्श, तथा पुरो न्यस्तमग्रे क्षिप्तमिर्धाकाण्डं च नात्ति स्म न चखाद । यतः स निमीलिताक्षो मुद्रितनेत्रः सन् वने स्वेच्छया यो विहारो विचरणं तस्य सारस्य स्वास्थ्यप्रदत्वादुत्तमस्य सस्मारास्मरत् ॥ १०९ ॥ निकेतनस्योभयतो द्विपेन्द्र-वृन्दं वधूकुन्तलजालनीलम् । दिनस्य पूर्वापरभागबद्धं बभौ यथा शार्वरमुज्ज्वलस्य ।।१०।। उस अपराधको दूर करनेके लिए बार-बार उस धूलिको सिर पर धारण किया ॥ १०६ ॥ अन्वय : नदी यावत् तद्भालसिन्दूल दलेन रोषारुणा इव पूत्कृत्य व्याकुलता इतः पति प्रति जगाम तावत् द्विपा विनिर्गत्य स्वधाम गता । अर्थ : हाथियोंके मस्तक पर जो सिन्दुर लगी हई थी उसके कारण रोषके मारे ही मानों लाल होकर नदी पुकार करती हुई अपने पति समुद्रके पास व्याकुल होकर पहुँचे कि उसके पहले ही हाथी लौटकर अपने स्थान पर वापिस आ गये ।। १०७ ।। ___अन्वय : द्विपेन्द्रः सन्निकटां गणेरूं न ईक्षते स्म, पुरः न्यस्तं इक्षुकाण्डं च न अत्ति स्म, निमीलिताक्षः सारस्य वने स्वेच्छाविहारस्य सस्मार। अर्थ : कोई हाथी सामने खड़ी हुई हथिनीकी ओर भी नहीं देख रहा था और सामने डाले हुए ईखोंको भी नहीं खा रहा था, किन्तु अपनी आँखोंको मूंदकर वनमें होनेवाले विहारके (आनन्द) सारको स्मरण कर रहा था ॥१०८॥ अन्वय : निकेतनस्य उभयतः वधूकुन्तलजालनीलं द्विपेन्द्रवृन्दं (तथा) बभौ यथा उज्ज्वलस्य दिनस्य पूर्वापरभागबद्धं शावरम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002756
Book TitleJayodaya Mahakavya Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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