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________________ ४ चतुर्थ सर्ग-भरतचक्रवर्तीके ज्येष्ठ पुत्र अर्ककीति भी सुलोचनाके स्वयंवरका समाचार पाकर काशी पहुँचते हैं और स्वागत कर यथोचित स्थान पर उनको ठहराया जाता है। पृ० १९१-२१८ ५. पंचम सर्ग-और और राजाओंके काशी पहुँचने पर स्वयंवर समारोह के होनेका विस्तृत वर्णन इस सर्गमें किया गया है। पृ० २१९-२६९ ६. षष्ठ सर्ग-विद्यादेवीके द्वारा सुलोचनाको राजाओंका परिचय कराया गया। उसे सुननेके पश्चात् सुलोचनाने सबसे योग्य समझ कर जयकुमारके गले में स्वयंवर माला डाली। पृ० २७०-३३२ ७. सप्तम सर्ग–अर्ककीतिके एक सेवकने उन्हें स्वयंवरके विरुद्ध भड़का दिया, सुमति मन्त्रीके द्वारा समझाये जाने पर भी, अर्ककीर्ति युद्ध करनेको तैयार हो गया और रण-भेरी बजाकर युद्धकी घोषणा कर दी। पृ० ३३३-३८१ ८. अष्टम सर्ग-दोनों ओरसे महायुद्ध होने और जयकुमारकी जीतका वर्णन है। पृ० ३८२-४२२ ९. नवम सर्ग-जयकुमारकी जीत और अर्ककीर्तिकी पराजयसे अकंपन महाराज खुश न होकर प्रत्युत्त अन्मना हो गये और सोचा कि अर्ककीर्ति को किस प्रकारसे प्रसन्न किया जावे । अन्तमें बड़ी अनुनय-विनय करके उन्होंने सुलोचनासे छोटी पुत्री अक्षमालाके साथ विवाह कर दिया और इस बातकी सूचना भरत चक्रवतिके पास भेज दी। पृ ४२३-४६१ १०. दशम सर्ग जयकुमारके विवाहकी तैयारी होती है, जयकुमारको बुलाया गया और दोनों दुलहा दुलहिनको परस्पर मिलाकर मंडपमें उपस्थित किया गया। पृ० ४६२-५०७ ११. एकादश सर्ग-जयकुमारके मुखसे सुलोचनाके रूप-सौंदर्यका विस्तृत वर्णन किया गया है। पृ० ५०८-५५८ ____१२. द्वादश सर्ग-उन दोनोंके पाणिग्रहणका, और आयी हुयी बरातके अतिथि-सत्कार एवं जीमनवारका विस्तृत वर्णन है। पृ० ५५९-६२१ १३. त्रयोदश सर्ग-जयकुमारने श्वसुरसे आज्ञा पाकर सुलोचनाके साथ अपने नगरके लिए प्रयाण किया और रास्तेमें चलकर गंगा नदीके तट पर पड़ाव डाला। इसका बड़ा सुन्दर और अनुपम वर्णन इस सर्गमें किया गया है। पृ० ६२२-६६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002756
Book TitleJayodaya Mahakavya Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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