________________
७०
पट्टावली-पराग
नहीं है, सो जानिएगा। "इस पुस्तक के प्रकाशन के सम्बन्ध में श्रमणसंघ के अधिकारी मुनिराजों ने तथा कॉन्फेन्स ने श्री पुष्फभिक्खू महाराज के साप पत्र व्यवहार भी किया है, इसके अतिरिक्त यह प्रश्न श्रमणसंघ के विचारणीय प्रश्नों पर रक्खा गया है और श्रमणसंघ के अधिकारी मुनिराज थोड़े समय में मिलेंगे तब इस पुस्तक प्रकाशन के विषय में मावश्यक निर्णय करने का सोचा है।"
कुछ समय के बाद पत्र में लिखे मुजब ता० ७-६-६२ के "जैनप्रकाश" में स्थानकवासी श्रमरणसंघ की कार्यवाहक समिति ने “सुत्तागम" पुस्तक को अप्रमाणित ठहराने वाला नीचे लिखा प्रस्ताव सर्वानुमति से पास किया
"मन्त्री श्री फूलचन्दजी महाराज ने "सुत्तागमे" नामक पुस्तक के प्रकाशन में भागमों में कतिपय मूल पाठ निकाल दिए हैं, वह योग्य नहीं। शास्त्र के मूल पाठों में कमी करने का किसी को अधिकार नहीं है, इसलिए "सुत्तागमे" नामक सूत्र के प्रस्तुत प्रकाशन को यह कार्यवाहक समिति अप्रमाणित उद्घोषित करती है।" . उपर्युक्त स्थानकवासी श्रमसमय की समिति का प्रस्ताव प्रसिद्ध होने के बाद इस विषय में अधिक लिखना ठीक नहीं समझा और चर्चा वहीं स्थगित हो गई।
पट्टावली के वि।.., ५ श्री पुप्फभिक्खू के "सुत्तागमे" नामक सूत्रों के प्रकाशन के सम्बन्ध में पुप्फभिक्खूजी द्वारा किये गये पाठ परिवर्तन के सम्बन्ध में कुछ लिखना मावश्यक समझ कर ऊपर निकाले हुए सूत्रपाठों की तालिका दी है । पुप्फभिक्खूजी का पुरुषार्थ इतना करके ही पूरा नहीं हुआ है, इन्होंने सूत्रों में से चत्य शब्द को तो इस प्रकार लुप्त कर दिया है कि सारा प्रकाशन पढ़ लेने पर भी शायद ही एकाध जगह चत्य शब्द दृष्टिगोचर हो जाये । १. उत्तराध्ययन-सूत्र के महानियंठिन्ज नामक बीसवें अध्ययन की दूसरी गाथा के चतुर्थ ___ "डि कुच्छिसिचेइए" इस चरण में "चैत्य" शब्द रहने पाया है, वह भी मिक्खूजी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org