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________________ ६६ पट्टावली-पराग का बचाव करने की चेष्टा की, परन्तु मूल-सूत्रों में परिवर्तन अथवा कोटछांट करने का कातर प्रयास किसी ने नहीं किया। उसके बाद स्थानकवासी साधु श्री अमोलकऋषिजी ने ३२ सूत्रों को भाषान्तर के साथ छपवाकर प्रकाशित करवाया। उस समय भी ऋषिजी ने कहीं-कहीं शब्द परिवर्तन के सिवा पाठों पर कटार नहीं चलाई थी। विक्रम की २१ वीं शती के प्रथम चरण में उन्हीं ३२ सूत्रों को "सुत्तागमे इस शीर्षक से दो भागों में प्रकाशित करवाने वाले श्री पुष्फभिक्खू (श्री फूलचन्दजी) ने उक्त पाठों को जो उनकी दृष्टि में प्रक्षिप्त थे निकालकर ३२ भागमों का संशोधन किया है। उन्होंने जिन-जिन सूत्रों में से जो-जो पाठ निकाले हैं उनकी संक्षिप्त तालिका नीचे दी जाती है - (१) श्री भगवती सूत्र में से शतक २० । ३०६ । सू० ६८३ - ६८४ । भगवतीसूत्र शतक ३ । ३०२ में से। भगवतीसूत्र के अन्दर जंघाचारण विद्याधारणों के सम्बन्ध में नन्दीश्वर मानुषोत्तर पर्वत तथा मेरु पर्वत पर जाकर चैत्यवन्दन करने के पाठ मूल में से उड़ा दिए गए हैं । (२) ज्ञाताधर्म-कथांग में द्रौपदी के द्वारा की गई जिनपूजा सम्बन्धी सारा का सारा पाठ हटा दिया है। (३) स्थानांग सूत्र में आने वाले नन्दीश्वर के चैत्यों का अधिकार हटाया गया है। (४) उपासक-दशांग सूत्र के प्रानन्द श्रावकाध्ययन में से सभ्यक्त्वोच्चारण का मालापक निकाल दिया है। (५) विपाकश्रुत में से मृगारानी के पुत्र को देखने जाने के पहले मृगादेवी ने गौतम स्वामी को मुहपत्ति से मुह बांधने की सूचना करने वाला पाठ-उड़ा दिया है। (६) भोपपातिक सूत्र का मूल पाठ जिसमें भम्बहपरिव्राजक के सम्यक्त्व उचरने का अधिकार था, वह हटा दिया गया है, क्योंकि उसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002753
Book TitleLaunkagacchha aur Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijayji
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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