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________________ ६४ पट्टावली-पराग में देवद्धिगरण की वाचक-वंशावली के नहीं हैं और न देवद्धि की गुरु-परम्परा के ये नाम हैं, तथा २८ से लेकर ६० तक ये नाम कल्पित हैं। इन नामों के प्राचार्यो या साधुओं के होने का उल्लेख माथुरी या वालभी स्थविरावली में अथवा तो अन्य किसी पट्टावली स्थविरावली में नहीं है। ६१वां ज्ञानाचार्य वास्तव में वृद्धपोषधशालिक आचार्य ज्ञानचन्द्रसूरि हैं। इसके मागे के ६२ से लेकर ८० तक के १८ नामों में प्रारम्भ के कतिपय नाम लौकागच्छ के ऋषियों के हैं, तब अन्तिम कतिपय नाम पुष्पभिक्षु के बड़ेरों के और उनके शिष्य-प्रशिष्यों के हैं। पंजाब के स्थानकवासियों को पट्टावली जो ऐतिहासिक नोंघ" पृ० १६३ में दी है उसमें देवद्धिगरिण के बाद के १८ नाम छोड़कर ४६ से लगा. कर निम्न प्रकार से नाम लिखे हैं४६ हरिसेन ४७ कुशलदत्त ४८ जीवनर्षि ४६ जयसेन ५० विजयर्षि ५१ देवर्षि ५२ सूरसेन ५३ महासेन ५४ जयराज ५५ गजसेन ५६ मिश्रसेन ५७ विजयसिंह ५८ शिवराज ५६ लालजीमल्ल ६. ज्ञानजी यति पंजाबी साधु फूलचन्दजी ने अपनी नवीन पट्टावली में देवद्धिगणिक्षमाश्रमण के बाद जो २८ से ४५ तक के नम्बर वाले नाम लिखे हैं वे तो कल्पित हैं ही, परन्तु उसके बाद के भी ४६ से ६० नम्बर तक के १५ नामों में से ७ नाम फूलचन्दजी की पट्टावली के नामों से नहीं मिलते। ४६वां पट्टधर का नाम पंजाबी पट्टावली में हरिसेन है, तब फूलचन्दजी ने उसके स्थान पर हरिशा लिखा है। पं० पट्टावली में ४७वां नाम कुशलदत्त है, तब फूलचन्दजी ने उसे कुशलप्रभ लिखा है । पं० पट्टावली में ४८वां नाम जोक्नषि है, तब फूलचन्दजी ने उसके स्थान पर "उमरणायरियो" लिखा है। ५१वां नाम पं० पट्टावली में "देवर्षि" है तब फूलचन्दजी ने "देवचन्द्र" लिखा है। पं० पट्टावली में ५३वा नाम "महासेन" मिलता है तब फूलचन्दजी ने "महासिंह" लिखा है। पं० पट्टावली में ५४वां नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002753
Book TitleLaunkagacchha aur Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijayji
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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