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श्रमरा-सुरतरु की स्थानकवासि-पडावली (१)
पुप्फभिक्खू की पट्टावली लिखने के बाद स्थानकवासी मुनि श्री मिश्रीमलजी (मरुधर केसरी)-निर्मित "श्रमणसुरतरु' नामक एक पट्टक हमारे देखने में आया, उसमें दी गई सुधर्मा स्वामी से ज्ञानजी ऋषि पर्यन्त के ६७ नाम पट्टावलो में लिखे गए हैं । तब पुप्फभिक्खू की नूतन पट्टावली में शानजी ऋषि को "ज्ञानाचार्य" नाम दिया है, और ६१ वां पट्टधर बताया है, इस प्रकार इन दो पट्टावलियों में ही छः नाम कम ज्यादह पाते हैं और जो नाम लिखे गए हैं उनमें से छ: नाम दोनों में एक से मिलते हैं । वे ये हैं -
२८ मा० वीरभद्रजी ३१ मा० वीरसेनजी
मा. जगमालजी ३८ मा० भीमसेनजी ४० पा. राजर्षिजी
४१ शा. देवसेनजो उपर्युक्त छः माचार्यों के नाम मोर नम्बर दोनों पट्टावलियों में एक से मिलते हैं। तब शेष देवद्धिगणि के बाद के ३४ नामों में से एक भी नाम एक दूसरे के साथ मेल नहीं खावा, इससे प्रमाणित होता है कि देवगिरिण क्षमाश्रमण के बाद के शानषी यति तक के सभी नाम कल्पित हैं, जिनकी पहिचान यह है कि इन सब नामों के अन्त में 'जी' और 'महाराज' शब्द प्रयुक्त किए गए हैं, 'बी' कारान्त पोर 'महाराजान्त' नाम मौलिक नहीं है,
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