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________________ पट्टावली पराग ने देखा कि यह चेप बढ़ रहा है, अब इसका प्रतीकार करना जरूरी है, यह सोचकर नानचन्द और उसके पुत्रों को न्यात से बहिष्कृत कर दिया, कोई उनको पानी तक नहीं पिलाता था । सगे सम्बन्धी भी अलग हो गये, फिर भी वे अपना दुराग्रह नहीं छोड़ते थे । उनके घरों में लड़कियां १२-१२ वर्ष की हो गई थीं, फिर भी उनसे कोई संबन्ध नहीं करता या औौर जो लड़की राजनगर में व्याही थी वह भी न्याती का विचार कर घर नहीं प्राती थी इस पर नानचन्द ने अपनी न्यात पर १४ हजार रुपयों का राजनगर की राज्यकोर्ट में दावा किया ।" उधर अमरचन्द के घर में उसकी औरत के साथ रोज क्लेश होने लगा । औरत कहती - "तुमने न्यात के विरुद्ध झगड़ा उठाया, यह मूर्खता का काम किया । न्यात से लड़ना झगड़ना प्रासान बात नहीं । पहले यह नहीं सोचा कि इसका परिणाम क्या होगा, तुमने न्यात से सामना किया और लोगों के उपालम्भ में खाती हूं बड़ी उम्रको वेटी को देखकर मेरी छाती जलती है." साह अमरा अपनी श्रोरत की बातों से तंग आकर शा० पूंजा टोकर से मिला और कहने लगा न्यात बहिष्कृति वापस खींचकर हमें न्यात में कैसे लें, इसका कोई मार्ग बतायो । बेटी बड़ी हो गई है, उसको व्याहे बिना कैसे चलेगा, अमरा की बात सुनकर पूजाशाह ने भ्रमरा को उल्टी सलाह दी, कहा न्यात पर कोर्ट में अर्जी करो, इस पर अमरा ने अर्जी की और अपनी पुत्रो को संभात के रहने वाले किसा ढुण्ढक को व्याह दी । पूजाशाह ने न्यात में कुछ " करियावर" किया तब उनके वेवाई जो ढुण्ढक थे, उसके वहां मर्यादा रक्खी तो भी ढुण्ढक लज्जित नहीं हुए, बहुत दिनों के बाद जब मर्जी की पेशी हुई तब शहर के घमंप्रेमी सेठ भगवान् इच्छा चन्द माणकचन्द औौर ग्रन्य भी जो धर्म के अनुयायी थे सब अदालत में न्यायार्थ गए । अदालत ने अर्जी पर हुक्म दिया कि " मामला धर्म का है, इसलिए सभा होगी तब फैसला होगा, दोनों पक्षकार अपने-अपने गुरुयों को बुलाकर पुस्तक प्रमाणों के साथ सभा में हाजिर हों," भदालत का हुक्म होते ही गांव-गांव पत्रवाहक भेजे, फिर भी कोई दुष्ढक आया नहीं था । Jain Education International For Private & Personal Use Only GOO ४५ -- www.jainelibrary.org
SR No.002753
Book TitleLaunkagacchha aur Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijayji
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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