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पट्टावली-पराग
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लवजो के सोमजी और कानजी नामक दो शिष्य हुए।
कानजो के पास एक गुजराती छीपा दीक्षा लेने पाया था, परन्तु कानजी के प्राचरण अच्छे न जानकर उनका शिष्य न होकर वह स्वयं साधु बन गया और मुंहपर मुहपत्ति बांध ली। धर्मदास को एक जगह उतरने को मकान नहीं मिला, तब वह एक दुण्ढे (फुटे टुटे खण्डहर) में उत्तरा तब लोगों ने उसका नाम "दुण्ढक" दिया।
लोकामति कुंवरजी के धर्मशी; श्रीपाल और अभीपाल ये तीन शिष्य थे, इन्होंने भी अपने गुरु को छोड़कर स्वयं दीक्षा ली, इनमें से पाठ कोटि प्रत्याख्यान का पन्य चलाया, जो भाजकल गुजरात में प्रचलित है ।
धर्मदास के धनजी नामक शिष्य हुए।
धनजी के भूदरजी नामक शिष्य हुए और भूदरजी के रघुनाथजी जयमलजी और गुमानजी नामक तीन शिष्य हुए जिनका परिवार मारवाड़ गुजरात और मालवा में विचरता है।
रघुनाथजी के शिष्य भीखमजी ने १३ पंथ चलाया।
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