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स्थानकवासियों की हस्तलिखित पट्टावली १.
स्थानकवासी पट्टावलियों के सम्बन्ध में ऊपर हमने जो ऊहापोह किया है, वे सभी मुद्रित पट्टावलियां हैं। अब हम एक हस्तलिखित पट्टावली के सम्बन्ध में विचार करेंगे। हमारे पास स्थानकवासी सम्प्रदाय की एक ११ पत्र की पट्टावली है जिसका प्रारंभ निम्नलिखित शब्दों से होता है
"प्रथः श्री गुरुभ्यो नमो नमः" ॐ ह्री श्री मोतीचन्दजी, श्री बर्दीचन्दजी श्री नमो नमः ।" "अथः श्री पटावली लिखते" "वली पाट परंपराये चाल्यो भावे छे ते कहे छे -"
"श्री जेसलमेर ना भंडार मांहे थी पुस्तक लोके महेताजी कडावी जोया छे, तिरगमांहे ऐसी वीगत निकली छे ॥"
उपर्युक्त प्रारम्भ वाली पट्टावली किसी स्थानकवासी पूज्य ने सं० १९३६ के वर्ष में गांव सीतामऊ में लिखी हुई है, ऐसा अन्तिम पुष्पिका से ज्ञात होता है । "पटावली" यह अशुद्ध नाम स्वयं बताता है कि इसका लेखक संस्कृत का जानकार नहीं था, उसने इस पट्टावली में सुनी-सुनाई बातें लिखी हैं और जैसलमेर के भण्डार में से पुस्तकें लोंका महेता ने निकालकर देखने की बात तो कोरी डींग है, क्योंकि लौंका महेता ने अहमदाबाद और लीम्बड़ी के बीच के गांवों के अतिरिक्त कोई गांव देखे ही नहीं थे । लौंका के परलोकवास के बाद भारगजी मादि ने गुजरात भोर अन्य प्रदेशों में फिरकर लौंका के मत का प्रचार किया था पर उनमें से कोई जैसलमेर गया हो ऐसा प्रमाण नहीं मिलता ।
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