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लौकागाछ की पहावली (३)
(बड़ोदे की गादी) तपगच्छ की बड़ी पोशाल के प्राचार्य ज्ञानसागरसूरि के पुस्तक-लेखक लोका गृहस्थ ने मूर्तिपूजा के विरुद्ध में अपना लौकामत चलाया, उसके मतानुयायी ऋषि नामक वेशधारियों की एक परम्परा नीचे मुजब है -
१. भाणजी ऋषि २. भीदाजी । ३. नूनाजो , ४. भीमाजी , ५. जगमालजी, ६. सर्वाजी , ७. रुपजी ,
८. जीवाजी , (१) ६. वरसिंहजी (वृद्ध) को सं० १६१३ के ज्येष्ठ वदि १३ को वड़ोदे
के भावसारों ने श्रीपूज्य का पद दिया, तब से उनकी गादी बड़ोदे में स्थापित हुई मौर "गुजराती लौकागच्छ मोटीपक्ष" ऐसा नाम प्रसिद्ध हुमा। इसी दान महमदाबाद के मूल गादी के श्रीपूज्य कुवरची ऋषि के उत्तराधिकारी श्री मेघजी ऋषि ने २६ ऋषियों के साथ प्राचार्य श्री हीरसूरि के
पास दीक्षा स्वीकार की, सं० १६२८ में । (२) १० वरसिंहबी ऋषि (लघु) दूसरे वरसिंहजी जिनका स्वर्गवास
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