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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
के एक पुत्र होता है और कुनाल अपने पुत्र को अशोक के राज्य का अशोक के नाम से एक आज्ञा-पत्र तक्षशिला के अधिकारीवर्ग के पास भेजा जिसमें लिखा कि 'कुनाल हमारे कुल में कलंकरूप है, इसलिये इसकी आँखें निकाल दी जायँ ।' राजाज्ञा-भंग की कठोरता का विचार करते हुए तक्षशिला - निवासियों ने आँखें निकालने के लिये चांडालों को बुलाया पर उनको इस दुष्टकार्य के करने का साहस नहीं हुआ, तब कुनाल ने स्वयं ही शलाका से अपनी आँखें निकालकर उस आज्ञा का पालन किया ।
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जैन लेखकों का इस संबंध में जो कथन है उसका सारांश यह है कि 'एक बार राजा अशोक ने अवंति के अधिकारियों को पत्र लिखा जिसमें लिखा गया कि 'अब कुमार विद्याध्ययन करे,' (अधीयउ कुमारो ) इस समय अशोक की दूसरी रानी पास में बैठी हुई थी । राजा के कहीं जाने पर उसने पत्र को पढ़ा और सोचा कि यदि कुनाल पढ़ लिखकर होशियार हो गया तो मेरे पुत्र को राज्याधिकार नहीं मिलेगा, इस विचार से उसने कुनाल को अपांग बनाने के इरादे से " अधीयउ" के "अ" के ऊपर कज्जल का बिंदु लगाकर "अंधीयउ कुमारो" बना लिया । राजा ने बिना पढ़े ही पत्र बन्द करके उज्जयिनी भेज दिया । उज्जयिनी के अधिकारी पत्र को बाँचकर अवाक् रह गए, और कुनाल के पूछने पर उन्होंने आज्ञा की क्रूरता का कुमार से निवेदन किया । कुनाल ने प्रसन्नतापूर्वक राजाज्ञा का पालन करने को कहा लेकिन किसी को यह दुष्ट कार्य करने का साहस नहीं हुआ । तब कुनाल स्वयं अपनी आँखों में शलाका आजकर अंधा हो गया ।'
इस प्रकार दोनों ही धर्मवालों के लेखों से यह बात साबित होती है कि युवराज कुनाल के अंधारे का खास कारण उसकी अपर माता का प्रपंच ही था ।
पर एक बात यहाँ पर अवश्य विचारणीय है । वह यह कि बौद्धों के लेखानुसार कुनाल तक्षशिला का शासक था और वहीं वह अंधा हुआ, परंतु जैन लेखों को देखते वह तक्षशिला का नहीं पर उज्जयिनी ( अवन्ति) का शासक था, और उज्जयिनी में ही उसकी आँखें गईं । यह एक असाधारण मतभेद मालूम होता है, पर वस्तुतः इसमें कुछ भी मतभेद नहीं है । बौद्धों की तक्षशिला और जैनों की अवंति वास्तव में भिन्न नगरी नहीं थी । 'तक्षशिला' शब्द बौद्धों ने अवंति के ही पर्यायार्थ में लिखा मालूम होता है । प्राचीन समय में तक्षशिला नाम अवंति का भी नामांतर था, यह बात वैजयंती कोश के निम्नलिखित वचन से भी सिद्ध होती है
'अवंती स्यात्तक्षशिला ।'
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- वैजयंती, पृ० १५९′ ।
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