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________________ ६६. वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना रेवतीमित्र ३६ वर्ष और आर्यमंगू २० वर्ष तक युगप्रधान रहे । तब तक निर्वाण को ४७० वर्ष हो गए । इसी बीच में ४५३ में कालकाचार्य हुए। दूसरे इस गाथोक्त कालकाचार्य को शक्र-संस्तुत लिखा है जो ठीक नहीं, क्योंकि शक्र-संस्तुत और निगोद-व्याख्याता कालकाचार्य तो एक ही थे, जो पन्नवणाकर्ता और शामाचार्य के नाम से भी प्रसिद्ध थे, और उनका समय ३३५ से ३७६ तक निश्चित है। इससे इस गाथोक्त समय के कालकाचार्य के विषय में पूर्ण संदेह है । ९९३ में कालकाचार्य होने और चतुर्थी को पर्युषणा करने के संबंध में लिखी हुई यह गाथा अनेक जगह मिलती है पर उस समय में सांवत्सरिक पर्व संबंधी घटना बनी नहीं थी । इसलिये ये गाथावाले कालकाचार्य भी वास्तव में हुए या नहीं यह निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते । पर हां, युगप्रधानपट्टावलियों में एक 'कालक' नाम के युगप्रधान का उल्लेख है, और उनका युगप्रधानत्व समय भी उन पट्टावलियों की प्रचलित गणनानुसार वीर संवत् ९८१ से ९९३ पर्यंत का है। यदि ९९३ वाले कालक ये ही मान लिए जायँ तो कोई विरोध नहीं है । जिन गाथाओं का ऊपर निर्देश किया है, वे नीचे दी जाती हैं "सिरिवीराओ गएसु, पणतीसहिएसु तिसय (३३५) वरिसेसु । पढमो कालगसूरी, जाओ सामज्जनामुत्ति ॥५५।। चउसयतिपन्न, (४५३) वरिसे, कालगगुरुणा सरस्सई गहिआ । चउसयसत्तरि वरिसे, वीराओ विक्कमो जाओ ॥५६।। पंचेव य वरिससए, सिद्धसेणो दिवायरो जाओ । सत्तसयवीस (७२०) अहिए, कालिगगुरू, सक्कसंथुणिओ ॥५७॥ नवसयतेणउएहिं (९९३), समइक्कतेहिं वद्धमाणाओ । पज्जोसवणचउत्थी, कालिकसूरीहितो ठविआ ॥५८।। -रत्नसंचयप्रकरण पत्र ३२ । ४७. '४५३ में कालकाचार्य हुए' यह उल्लेख कालकाचार्य द्वारा किए गए गर्दभिल्ल के उच्छेदवाली घटना का स्मारक है । मेरुतुंग सूरि का यह कथन कि 'इस वर्ष में कालकाचार्य की आचार्य पद-स्थापना हुई (अस्मिश्च वर्षे गर्दभिल्लोच्छेदकस्य श्रीकालकाचार्यस्य सूरिपदप्रतिष्टाऽभूत् ।' विचारश्रेणि प० ३) ठीक नहीं है । गर्दभिल्लवाली घटना के बहुत पहले ही कालक को आचार्य पद प्राप्त हो गया था । आचार्य कालक के संबंध में लिखा गया है कि पारिस कुल में जाकर उन्होंने निमित्त के बल से साहि राजा को वश किया था । कालक के निमित्त अध्ययन के संबंध में पंचकल्प चूणि में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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