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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
कालकसूरि नाम के जैनाचार्य की बहन सरस्वती साध्वी को जबरन् पड़दे में डाल दिया । आचार्य कालक ने गर्दभिल्ल को बहुत समझाया, उज्जयिनी के जैन संघ ने भी साध्वी को छोड़ देने के लिये विविध प्रार्थनाएँ कीं, पर राजा ने एक भी न सुनी ।
कालकसूरि ने निरुपाय हो राजसत्ता की मदद लेनी चाही पर उज्जयिनी के गर्दभिल्ल दर्पण से लोहा लेनेवाला कोई भी राज्य उस समय नहीं था । भरोच के बलमित्र - भानुमित्र कालक और सरस्वती के भानजे थे पर वे भी दर्पण के सामने ऊँगली ऊँची करने का साहस नहीं कर सके । अंत में कालक ने परदेश जाकर किसी राजसत्ता की सहायता लेने की ठानी और वे पारिसकुल जा पहुँचे ।
पारिसकुल में जाकर कालक ने एक शकवंश्य शाह (मंडलिक राजा) के दरबार में जाना शुरू किया । निमित्त ज्ञान के बल से थोड़े ही दिनों में कालक ने शाह के मन को अपने वश में किया और मौका पाकर वह उसे और दूसरे अनेक शाहों को समुद्र मार्ग से हिन्दुस्थान में ले आया । रास्ते
बृहत्कल्प भाष्य और चूर्णि में भी राजा गर्दभ संबंधी कुछ बातें हैं, जिनका सार यह है कि 'उज्जयिनी नगरी में अनिलपुत्र यव नामक राजा और उसका पुत्र गर्दभ युवराज था । गर्दभ के अडोलिया नाम की बहिन थी । यौवनप्राप्त अडोलिया का रूप सौंदर्य देखकर युवराज गर्दभ उस पर मोहित हो गया । उसके मंत्री दीर्घपृष्ठ को यह बात मालूम हुई और उसने अडोलिया को सातवें भूमिघर में रख दिया और गर्दभ उसके पास जाने आने लगा ।'
चूर्णि का मूल लेख इस प्रकार है
"उज्जेणी णगरी, तत्थ अणिलसुतो जवो नाम राया, तस्स पुत्तो गद्दभो णाम जुवराया, तस्स रण्णो धूआ गद्दभस्स भइणी अडोलिया णाम, सा य रूपवती तस्स य जुवरण्णो दीहपट्टो णाम सचिवो ( अमात्य इत्यर्थः) ताहे सो जुवराया तं अडोलियं भइणि पासित्ता अज्झोववण्णो दुबली भवइ । अमच्चेण पुच्छितो गिब्बंधे सिट्टं अमच्चेण भण्ण सागारियं भविस्सति तो सत्तभूमीघरे छुभउ तत्थ भुंजाहि ताए समं भोए लोगो जाणिस्सइ सा कर्हिपि णट्ठा एवं होउत्ति कतं ।"
संभव है, साध्वी सरस्वती का अपहारक गर्दभिल्ल और अडोलिया का कामी यह गर्दभ दोनों एक ही हों ।
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