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________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल गणना में लाट देश के राजा बलमित्रभानुमित्र आदि भी शाहों के साथ हो गए । कोई ९६ शक मंडलिक और लाट के राजा बलमित्र की संयुक्त सेना ने उज्जयिनी को जा घेरा । घमासान लड़ाई के बाद शक शाहों ने उज्जयिनी पर अधिकार कर लिया और गर्दभिल्ल को कैद करके सरस्वती साध्वी को छुड़ाया । कालक सूरि की सलाह के अनुसार गर्दभिल्ल को पदच्युत करके जीवित छोड़ दिया गया और उज्जयिनी के राज्यासन पर उस शाह को बिठलाया गया जिसके यहाँ कालक ठहरे थे । उक्त घटना बलमित्र के ४८ वें वर्ष के अंत में घटी। यह समय वीर निर्वाण का ४५३ वाँ वर्ष था । ३९. निशीथ चूर्णि आदि प्राचीन ग्रंथकारों ने इनको वंश से 'सग' और उपाधि से 'साहि' लिखा है । इनका मुखिया 'साहानुसाही' कहलाता था । संस्कृत ग्रंथकार आचार्य हेमचंद्र सूरि आदि ने 'साहि' का अनुवाद 'शाखि' किया है । ये साहि अथवा शक सीथियन जाति के लोग थे और इनका निवासस्थान ईरान अथवा बलख था । आचार्य कालक ९६ साहियों को लेकर काठियावाड़ में उतरे और वर्षाऋतु वहाँ बिता कर लाट के राजा बलमित्र - भानुमित्र को भी साथ लेकर उज्जयिनी पर चढ़ गए थे । देखो निम्नलिखित कथावली का उल्लेख I ५५ " ताहे जे गद्दहिल्लेणावमाणिया लाडरायाणो अण्णेय ते मिलिउं सव्वेहिं पि रोहिया उज्जेणी ।" - कथावली २, २८५ । । ४०. "सूरीजप्पासि ठिओ, आसीसोऽवंतिसामिओ सेसा तस्सेवगा य जाया, तओ पउत्तो अ सगवंसो ॥ ८० ॥" इसी प्रकार का उल्लेख निशीथ के १० वें उद्देश की "जं कालगज्जो समल्लीणो सो तत्थ राया अधिवो । राया ठवितो, ताहे सगवंसो उप्पण्णो ॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only - कालकाचार्य कथा | चूर्णि में भी है - निशीथ चू० १० उ० पत्र २३६ । यद्यपि निशीथ चूर्णि के इस उल्लेख का पूर्व संबंध यह है कि 'उन साहियों ने काठियावाड़ को ९६ भागों में बाँट लिया और कालकाचार्य जिसके पास ठहरे थे उस www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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