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________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना करने को तैयार हुआ । खारवेल ने इस जैनद्वेषी राजा को, चरणों में वंदन करवाके, बहुसंख्यक धन रत्न लेकर छोड़ दिया और आयंदा ऐसा उत्पात होने पर पदच्युत करने की धमकी देकर नंद के द्वारा लाई हुई जिन-मूर्ति को लेके वह अपने देश को लौट गया३४ । - इसके बाद खारवेल का देहांत हो गया५, पुष्यमित्र निरंकुश होकर जैनों और बौद्धों पर उसी धर्मविरोधिनी नीति को बरतने लगा जो उसने शुरू में अख्तियार की थी । परिणाम यह हुआ कि कम से कम चार सौ वर्ष "बारसमे च वसे..............सहसे हि वितासयति उतरापधराजानो.....मगधानं च विपुलं भयं जनेतो हत्थी सुगंगीय पाययति [1] मागधं च राजानं वहसदिमितं पादे वंदापयति नंदराजनीतं च कालिंगजिनं संनिवेसं....गहरतनान पडिहारे हि अंगमागधवसु च नेयाति [1]" अर्थात्-'बारहवें वर्ष में .......हजारों से उत्तरापथ के राजाओं को भयभीत किया और मगधवासियों को भयभीत करता हुआ वह अपने हाथी को सुगांगेय (प्रसाद) तक ले गया और मगधराज बृहस्पतिमित्र को पैरों में गिराया, तथा राजा नंद द्वारा ले जाई गई कलिंग की जिन मूर्ति को......और गृहरत्नों को लेकर प्रतिहारों द्वारा अंग मगध की संपत्ति ले आया ।' ३४. पुष्यमित्र ने मगध पर ३५-३६ वर्ष तक राज्य किया, ऐसे जैन और पौराणिक उल्लेख हैं । यदि खारवेल की पहली चढ़ाई पुष्यमित्र के पहले वर्ष में मान ली जाय तो यह उसकी दूसरी चढ़ाई उसके ४-५ वें वर्ष में हुई यह मानना जरूरी है । और इस हिसाब से इस चढ़ाई के बाद पुष्यमित्र ने कम से कम ३० वर्ष राज्य किया यह मानना भी अनिवार्य है । इसलिये हमने पुष्यमित्र को जीता छोड़कर खारवेल के जाने का इशारा किया है । खारवेल के लेख से भी यही ध्वनित होता है कि मगध के राजा को अपने चरणों में गिराकर जिन मूर्ति के उपरांत धनरत्न लेकर खारवेल अपने देश को चला गया था । तित्थोगाली पइन्नय आदि ग्रंथों में दूसरी चढ़ाई में महेंद्र-खारवेल-ने कल्कीपुष्यमित्र-को मारकर उसके पुत्र 'दत्त' अथवा 'धर्मदत्त' को पाटलिपुत्र का राज्य दिया, ऐसा लेख है । ३५. खारवेल के राज्यकाल के १३ वर्षों का संक्षिप्त वर्णन उसके लिखाए हुए हाथीगुंफा के लेख में दिया है, पर इसके आगे खारवेल के अस्तित्व का कुछ भी पता न होने से विद्वानों का अनुमान है कि उसके बाद वह जीवित नहीं रहा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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