SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना ३७ 'शक से १३२३ (वीर निर्वाण १९२८) वर्ष व्यतीत होंगे तब कुसुमपुर (पाटलिपुत्र) में दुष्टबुद्धि कल्कि का जन्म होगा ।' (२) कालसप्ततिका प्रकरण में लिखा है 'वीर निर्वाण से १९१२ वर्ष और ५ मास बीतने पर पाटलिपुत्र नगर में चंडाल के कुल में चैत्र की अष्टमी के दिन श्रमणों (साधुओं) का विरोधी जन्मेगा जिसके तीन नाम होंगे-१. कल्की , २. रुद्र और ३. चतुर्मुख ।' (३) दीपमाला कल्प में जिनसुन्दर सूरि लिखते हैं 'वीर निर्वाण के १९१४ वर्ष व्यतीत होंगे तब पाटलिपुत्र में म्लेच्छ कुल में यश की स्त्री यशोदा की कुक्षि से चैत्र शुक्ल ८ की रात में कल्कि का जन्म होगा ।' (४) उपाध्याय क्षमाकल्याण अपने दीपमाला कल्प (पृष्ठ ४५)) में लिखते हैं 'मुझसे (वीर निर्वाण से) चार सौ पचहत्तर (४७५) वर्ष बीतने पर विक्रमादित्य नाम का राजा होगा । उसके बाद करीब १२४ वर्ष के भीतर (निर्वाण संवत् ५९९ में) पाटलिपुत्र नामक नगर में x x x चतुर्मुख (कल्कि) का जन्म होगा ।' (५) दिगंबराचार्य नेमिचंद्र अपने "तिलोयसार' नामक ग्रंथ में लिखते हैं___'वीर निर्वाण से ६०५ वर्ष और ५ मास बीतने पर 'शक राजा' होगा और उसके बाद ३९४ वर्ष और ७ मास में अर्थात् निर्वाण संवत् १००० में कल्की होगा ।' कल्की के समय के संबंध में जैन आचार्यों की जो भिन्न भिन्न मान्यताएँ हैं उनका निर्देश ऊपर कर दिया । अब हम कल्की के समय में बनी हुई घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन करेंगे जो 'इस विषय के सबसे प्राचीन ग्रंथ तित्थोगाली पइन्नय तथा महानिशीथ सूत्र में दिया हुआ है ।' (६) तित्थोगाली पइन्नय में लिखा है 'कल्कि का जन्म होगा तब मथुरा में राम और कृष्ण के मंदिर गिरेंगे और विष्णु के उत्थान (कार्तिक शुदि ११) के दिन वहाँ जनसंहारक घटना होगी ।' । (७) इस जगत्प्रसिद्ध पाटलिपुत्र नगर में ही 'चतुर्मुख' नाम का राजा होगा । वह इतना अभिमानी होगा कि दूसरे राजाओं को तृण समान गिनेगा । नगरचर्या में निकला हुआ वह नंदों के पांच स्तूपों को देखेगा और उनके संबंध में पूछताछ करेगा, तब उसे उत्तर में कहा जायगा कि यहाँ पर बल, रूप, धन और यश से समृद्ध नंद राजा बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy