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________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना वंश की कोई छोटी राज्य शाखा कायम हो गई हो और उसमें बौद्धों के नागदासक और पौराणिकों के दर्शक वा हर्षक वगैरह राजा पैदा हुए हों और इन दोनों शाखाओं के राजाओं के राजत्व काल को गड़बड़ करके बौद्धों और पौराणिकों ने गलत वंशावलियाँ तैयार कर ली हों । इन दोनों सूचियों में निश्चित भूल कहाँ है यह जानना कठिन है; पर जहाँ तक मैं समझता हूँ, पुराणों की सूची में दर्शक के २४ वर्ष अधिक हैं । इन्हें निकाल देने से पौराणिक और जैन गणनाएँ मौर्य राज्य के अंत में जाकर मेल खा जाती हैं । बौद्ध ग्रंथ 'दीपवंश' में नंदों का नामोल्लेख तक नहीं है और 'महावंश' में नव नंदों का राज्यकाल सिर्फ २२ वर्ष लिखा है, यह स्पष्ट भूल गंगाया दक्षिणे कूले, चतुर्थेऽह्नि करिष्यति ।" २३ " उदायी भविता तस्मात्त्रयस्त्रिंशत्समा नृपः । स वै पुरवरं राजा, पृथिव्यां कुसुमाह्वयम् ॥ गंगाया दक्षिणे कूले, चतुर्थेब्दे करिष्यति ॥ ३१३|| - ब्रह्मांड० म० भा० उपो० ३ अध्याय ७४ । - वायुपुराण उत्त० अ० ३७ । २१. ऊपर देख आए हैं कि उदायी ने पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया . था, उदायी जैनों और बौद्धों के कथनानुसार अजातशत्रु, कोणिक का पुत्र था, जैन उल्लेखों के अनुसार उदायी के बाद मगध की राजधानी नंद के हाथ में गई थी, पुराण उदायी के बाद नंदिवर्द्धन और महानंदि का मगध पर राज्याधिकार बताते हैं, जो वास्तव में नंद ही हैं । परन्तु पुराणकार अजातशत्रु और उदायी के बीच में वंशक अथवा दर्शक को मगध का राजा बताते हैं जो स्पष्ट भूल है । यद्यपि दर्शक शैशुनाग वंश का ही राजवंशी पुरुष था, पर वह मगध का मुख्य राजा नहीं किंतु मगध की पुरानी राजधानी राजगृह की शाखा का मांडलिक था । महाकवि भास के 'स्वप्नवासवदत्त नाटक' के निम्न उद्धृत उल्लेखों से भी दर्शक राजगृह का राजा था यही ध्वनित होता है । देखो - Jain Education International "काञ्चुकीयः- भोः श्रूयताम् । एषा खलु गुरुभिरभिहितनामधेयास्माकं महाराजदर्शकस्य भगिनी पद्मावती । सैषा नो महाराजमातरं महादेवीमा श्रमस्थामभिगम्यानुज्ञाता तत्रभवत्या राजगृहमेव यास्यति । " - स्वप्नवासवदत्त, अंक १ पृष्ठ १४ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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