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________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना अजातशत्रु का उत्तराधिकारी उदायी भी पाटलिपुत्र नगर बसाकर अपना राज्यकार्य वहाँ ले गया था, इस आशय का जैन ग्रंथों और पुराणों में लेख है ।२० इससे संभव है कि अजातशत्रु के समय से ही राजगृह में इस वैमातृक दश भाइयों को यह कहकर उभाड़ा था कि 'श्रेणिक हम लोगों की स्वतंत्रता का बाधक है इस वास्ते हम सब मिलकर इसको कैद कर दें और राज्य को ११ हिस्सों में बाँट लें ।' भाइयों ने कोणिक की सलाह मान ली और श्रेणिक को कैद करके राज्य को बाँट लिया । इस बात का निरयावली में इस प्रकार वर्णन किया है - "अभयंमि गहियव्वए अन्नया कोणिओ कालाईहिं दसहि कुमारेहि समं मंतेइ-सेणियं सेच्छाविग्घकारयं बंधित्ता एक्कारसभाए रज्जं करेमोत्ति । तेहि पडिस्सुयं । सेणिओ बद्धो । पुव्वन्हे अवरन्हे य कससयं दवावेइ ।" -निरयावली वर्ग १ अध्याय १ पृ० ६ । "तते णं कूणिए राया अन्नया कयाइ कालादीए दस कुमारे सद्दावेति २ रज्जं च जाव जणवयं च एक्कारसभाए विरिंचति २ सयमेव रज्जसिरिं करेमाणे पालेमाणे विहरति ।" -निरयावली वर्ग १ अध्याय १ पेज १४ । २०. पाटलिपुत्र की उत्पत्ति का सविस्तर वर्णन 'आवश्यक चूर्णि (लिखित पत्र २४८) और आवश्यक वृत्ति (पत्र ६८६) में दिया है । आवश्यक वृत्ति के थोड़े से अवतरण हम नीचे देते हैं "ताहे रायाणो उदाइं ठावंति । उदाइस्स चिंता जाया एत्थ णयरे मम पिया आसि, अद्धितीए अण्णं नयरं कारावेमि, मग्गह वत्थुति पेसिया xxxx - आवश्यक वृ० पृ० ६८७ "तं किर वीयणगसंठियं नयरं, णयराभिए य (?) उदाइणा चेइहरं कारावियं, एसा पाडलिपुत्तस्स उप्पत्ती ।" -- आ० वृ० पृ० ६८६ । "सो उदाई तत्थठिओ रज्जं भुंजइ ।" - आ० वृ० पृ० ६९० इस बात का पुराणों से भी समर्थन होता है । ब्रह्मांड और वायुपुराण में उदायी ने कुसुमपुर (पाटलिपुत्र) बसाया इस बात के समर्थक निम्नलिखित श्लोक मिलते हैं "उदायी भविता तस्मात्त्रयस्त्रिंशत्समा नृपः । स वै पुरवरं राजा, पृथिव्यां कुसुमाह्वयम् ॥१३२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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