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________________ २४ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना है । नंदों के समय में बौद्ध लेखकों ने बहुत गड़बड़ कर दिया है और इसी कारण से इनकी सूचियों में से नंदसंबंधी अधिक समय छूट गया है । पुराणकार नंदों का राजत्व काल १०० वर्ष का लिखते हैं और जैन ग्रंथकार १५० वर्ष तक मगध पर नंदों का शासन हुआ बताते हैं । हमारी समझ में जैनों का कथन ही इस विषय में ठीक प्रतीत होता है, क्योंकि पुराणकारों ने नंदिवर्धन और महानंदि को शैशुनागवंश्य मानकर इनका राजत्व- काल शैशुनाग की वंशावली में गिन लिया है, पर वस्तुतः नंदिवर्धन और महानंदि नव नंदों से भिन्न नहीं हैं । इसलिये इनका राजत्वकाल नंदकाल में लेना चाहिए और ऐसा करने पर पौराणिक गणना से नंदों के १८५ वर्ष आएँगे जो कि जैन गणना से ३५ अधिक हैं । जैन गणना मौर्यकाल १६० वर्ष का मानती है और पुराणकार इसको १३७ वर्ष से अधिक नहीं मानते । उधर नंदिवर्धन और महानंदि के वर्ष नंदों के काल में ले लेने से पौराणिक गणना में शैशुनागों के ९४ वर्ष बचेंगे, इनमें से दर्शक को राजगृह शाखा का मान के इसके २४ वर्ष भी निकाल दिए जाय तो शैशुनागों के राजत्वकाल के वर्ष ७० बचेंगे और मौर्यांत समय ७० + १८५ + १३७ = ३९२ वर्ष का होगा | जैन गणनानुसार भी मौर्यांत समय ८२ + १५० + १६० ३९२ वर्ष के बराबर ही होता है । ऐसा मालूम होता है कि बौद्धों ने बहुत समय तक राजगृहवाली सत्ताहीन राज्य - परंपरा को ही पकड़ रक्खा था, अन्यथा वे क्यों नंदों का नामोल्लेख न करें और नव नंदों का सिर्फ २२ वर्ष का अल्प समय बतावें । इसका और क्या कारण हो सकता है ? हमने ऊपर देखा कि जैन और पौराणिक गणनाएँ किसी तरह मौर्यकाल के अंत में जाकर मिल जाती हैं, पर बौद्ध गणना किसी तरह मेल नहीं खाती । संभवतः इसमें से नंदों के राजत्व काल के बहुत वर्ष छूट गए हैं, और शायद इसी कमी को ठीक करने के इरादे से पिछले बौद्ध लेखकों ने उदायिभद्द मुंड और अनुरुद्ध इनमें से प्रत्येक का १८ - १८ वर्ष का राजत्व काल गिनकर और बिंदुसार के ५८ वर्ष मानकर उक्त गणना में करीब ६० वर्ष बढ़ाने की चेष्टा की होगी । कुछ भी हो, बौद्धों की कालगणना दूषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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