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________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना एक बार मेंढियगाम-निवासी प्रजा इस प्रकार कल्पना करती हुई महावीर के पास से अपने स्थान की ओर जा रही थी । मार्ग के निकट मालुका कच्छ के पास तप करते हुए महावीर-शिष्य सिंहमुनि ने यह जनसंवाद सुना और उनका ध्यान विचलित हो गया । इतना ही नहीं, तपोभूमि से निकलकर वे बच्चे की भाँति जोर से रो पड़े । गाँव की ओर जाते हुए जन समवाय ने सिंहमुनि के इस रुदन को सुनकर "महावीर कालप्राप्त हो गए" यह मान लिया हो, और आगे से आगे उड़ती हुई यह अफवाह बुद्ध के कानों तक पहुँच गई हो तो इसमें आश्चर्य क्या है । मेंढियगाम पावा के पास ही होगा इस कारण से मेंढियगाम को लोगों ने पावा मान लिया हो, अथवा महावीर का पावा में निर्वाण होने से पिछले बौद्ध लेखकों ने इन उल्लेखो में 'पावा' शब्द लिख दिया हो तो आश्चर्य नहीं है । कुछ भी हो, उक्त उल्लेखों का कारण-विषय महावीर का निर्वाण नहीं पर उनकी सख्त बीमारी के समय की इस प्रकार की कोई अफवाह ही है । तेएणं अन्नाइटेसमाणे अंतो छण्हं मासाणं पित्तज्जर परिंगयसरीरे दाहवक्कंतीए छउमत्थे चेव कालं करेस्सति ।" - भगवती १५, ६८६ । ९. महावीर के शिष्य सिंह अनगार को महावीर की अंतिम बीमारी कैसी भयंकर जान पड़ी थी और वे इसकी चिंता से बच्चे की तरह किस तरह रो पड़े थे इसका वर्णन भी दर्शनीय है "तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सीहे नाम अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए मालुया कच्छस्स अदूरसामंते छठें छठेणं अनिक्खित्तेणं २ तवो कम्मेणं उड्ढं बाहा जाव विहरति । तएणं तस्स सीहस्स अणगारस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अयमेयारूवे जावसमुप्पज्जित्था-एवं खलु ममं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विउले रोगायंके पाउन्भूए उज्जले जाव छउमत्थे चेव कालं करिस्सति, वदिस्संति य णं अन्नतित्थिया छउमत्थे चेव काल गए, इमेणं एयारूवेणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुभइ आया० जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवा २ मालुयाकच्छगं अंतो २ अणुपविसइ मालुया० २ महया २ सद्देणं कुहुकुहुस्स परुन्ने ।" - भगवती १५, ६८६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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